इतना सा व्यवहार है
नज़र मिलाई,हाथ मिलाया
इतना सा व्यवहार है
मुँह में प्रशंसा,दिल में गाली
यही आज का शिष्टाचार है
कुछ जगत की देखा देखि,कुछ दुनियादारी का सार है
आज के सदाचार में,टीवी भी कुछ आधार है
लब-लब पर है मधुर शब्द,अंदर तीखी तेज़ कटार है
नोटों से है रिश्ते-नाते,नोटों से संसार है
प्रेम प्यार को फुर्सत कैसी,सब कुछ बस व्यपार है
नंगा ज़िस्म,नंगे नोट, देख लटकती लार है
कैसे संस्कार बने यहाँ,कैसा ये विस्तार है
फ़टे चिथड़ों में ज़िस्म जब,बिकता बिच बाज़ार है।।।।।
"गुरू"