Thursday 22 December 2022

तुम…..Tum….a poem by “guroo “


 शुरू-शुरू में मेरे साथ इतनी ज़ज़्बाती थी तुम…

मैं जैसा कहता था,वैसी हो जाती थी तुम…


दूसरों से मेरी बुराई कर रही हो तो पहले ख़ुद से पूछना 

मुझे अच्छे से जानती हो,या यूँ ही मन हल्का कर रही हो तुम…


किसी और की होकर दोबारा मेरी तरफ़ मत आना 

बार-बार किसी और की होकर,अब मेरी नहीं रही तुम…


तुमसे बात करने का दिल तो बहुत करता है मगर…

बातें रोक लेती हैं,जो दूसरों से मेरे बारे में किया करती हो तुम…


मुझे डर है कि तुमसे बात करके फिर से तुम्हारा ना हो जाये”गुरु”

दूसरों का होकर भी तुम्हारा रहूँ, धोखा देकर दूसरों की रहो तुम…..

Saturday 10 December 2022

उसके दिल में थोड़ी सी जगह ली है मैंने….uske dil me thodi si jagah li hai maine ….a poem by “Guroo”

पल दो पल ही सही,मगर उसे ख़ुशी दी है मैंने

उसके दिल में थोड़ी सही,मगर जगह ली है मैंने


देख जो मुझको हँसे,उन खिलखिलाते होठों की क़सम

मुझसे लिपटकर रोने वाले उन हाथों की क़सम 

हद्द से बढ़कर उस से मोहब्बत की है मैंने 

उसके दिल में थोड़ी सही,मगर जगह ली है मैंने


राहों में मिलना उस से,उसकी नज़रों का शर्मसार हो झुक जाना

होठों पे गाली,डर चेहरे पर,दिल ही दिल मुस्कुराना

जिस्म से लेकर रूह तक जगह ली है मैंने 

उसके दिल में थोड़ी सही,मगर जगह ली है मैंने


मेरी आँखों में रहने वाले,मुझसे नज़रें छिपाते चलते हैं

मैंने एक महबूब नहीं बदला,वो हर रोज़ बदलते है 

“गुरू” की मोहब्बत खोटी भले,पर हर बार खरी सलाह दी है मैंने

उसके दिल में थोड़ी सही,मगर जगह ली है मैंने


“गुरू”

पहले सा प्यार नहीं करता…pehle sa pyar nahi karta….a poem by “Guroo”

 



रातों की नींद में ख़ुद को बेक़रार नहीं करता

दिन के उजाले में मेरा इंतज़ार नहीं करता

मेरा महबूब मुझे पहले सा प्यार नहीं करता


पहले की तरह शाम को छत पर मुझसे नहीं आता 

न इशारे करता,न नाराज़ होकर ग़ुस्से में आँखें दिखाता

मुझसे मिलने के लिए अब सोलह शृंगार नहीं करता 

मेरा महबूब मुझे पहले सा प्यार नहीं करता


उसकी ज़िंदगी में था,अब ख़्वाबो तक में आता ही नहीं

पूछने को मेरी तबीयत अब वो हाथ उठाता ही नहीं

मेरा होकर भी वो मुझपर नहीं मरता

मेरा महबूब मुझे पहले सा प्यार नहीं करता



वो कभी मुझे देखने के लिए मेरी गली के चक्कर काटता था

धोखा देकर मेरा प्यार,ग़ैरों के दामन में बाँटता था 

गिर गया नज़रों से जो कभी दिल में बैठा रहा करता

मेरा महबूब मुझे पहले सा प्यार नहीं करता…..


                                                      “गुरू”

Monday 31 October 2022

एक उलझन है...सुलझा दो ना.....ek uljhan hai..suljha do na...a poem.by guru

 एक उलझन है........सुलझा दो ना

हम में क्या रिश्ता है..समझा दो ना...


क्यों तुम्हारा हर पल इंतजार रहता हैं

बात करने को दिल बेकरार रहता है

पीने वाले पिएं दिन रात गांजा, शराब 

मुझ पर तो तुम्हारा नशा सवार रहता है

ये कैसे उतरेगा...कोई तो दवा दो ना

उलझन है...सुलझा दो ना


प्यार भरे तानो से क्यों घायल करते हो

चौबीसों घंटे दिल पर क्यों छाए रहते हो

दिल जिस्म नशा याद सपने तक तेरे 

फिर भी कहो; क्यूं बन के पराए रहते हो 

राज को राज कब तक रखें... छपवा दो ना

उलझन है...सुलझा दो ना...


रोज के कामों में जीना दुश्वार रहता है 

तेरे इश्क में दिल ये बीमार रहता है

यूं तो आलस से भरा रहता है बदन बावरा

पर तुम जब भी पुकारो,"गुरू"तैयार रहता है 

खूबसूरत बहुत हुं... वहम मिटा दो ना

उलझन है...सुलझा दो ना...

Thursday 20 October 2022

ज़रूरी था ….Zaruri tha….a poem from “Guroo”

 मेरे ही संग खट्टे-मीठे ख़्वाब का बुनना ज़रूरी था 

भीड़ भरी दुनिया में,क्या मुझे ही चुनना ज़रूरी था 


ग़र ज़हर थी तुम तो ज़हर सा बनकर ही रहती 

मिश्री सा मीठा बनकर,क्या मुझमें घुलना ज़रूरी था


मैंने सालों तक ख़ुद को परखा है,तुझे भूलना नामुंकिन है 

ख़ुद को परखने के लिए,इस राज़ का खुलना ज़रूरी था


तेरे महँगे फ़ोन की ब्लॉकलिस्ट में नंबर मेरा सेव पड़ा है 

दूसरों से तेरी रिकॉर्डिंग माँगे,आवाज़ सुनना ज़रूरी था 


राह अलग-चाह अलग,जब अलग-अलग जीना मरना

लाख सितम के बाद तेरा ,क्या छत पे दिखना ज़रूरी था


“गुरु” ने साँचा बनकर के,क़ीमती हीरे सा सँभाला सदा तुम्हें 

चोरी छिपकर ,बाज़ारू बनकर बिकना क्या ज़रूरी था


                                                                               “गुरु”

Sunday 16 October 2022

अब उसका रहना नहीं चाहता…ab uska rehna nahi chahta..a poem by guru

 

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 सालों से उसे भूलना चाहता हूँ ,लेकिन भुला नहीं पता

वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता 


उसे भूलने में मुझे अब बस इतनी सी दिक्क्त बची है दोस्तों

उसे भूलूँ तो उसके बदले में कोई भी याद नहीं आता 

वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता 


वो दौर और था कि,उसका दीवाना बना घूमता था मैं

अब वो घर आकर भी मिले,तो मैं मिलना नहीं चाहता 

वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता


मुझे याद है कि हर पल में “गुरु”सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी का था

अब टुकड़ों में भी बँट जाऊँ,तो उसके हिस्से आना नहीं चाहता

वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता


“गुरु”

Saturday 6 August 2022

हम तुम्हें लिखते हैं,तुम पढ़ पाओगे क्या…Hum tumhe likhte hain,tum padh paoge kya…(a poem by guroo)


नज़रों के रस्ते होकर दिल में बस पाओगे क्या

हम तुम्हें लिखते हैं,तुम पढ़ पाओगे क्या…..


जो बोलोगे,मुझे क़बूल लेकिन अब बारी मेरी है 

हर वक्त तुम्हें सोचते हैं,तुम सुन पाओगे क्या….


माशा अल्लाह-तेरी समझ पे जी सदके दिलदार मेरे 

हम कुछ कहना चाहते हैं,तुम समझ पाओगे क्या.


सारी दुनिया रुसवा करके..पास तुम्हारे आ भी गए 

हम तुम्हारे होना चाहते हैं,तुम हमारे बन पाओगे क्या….


लिए चुरा सब बोल तेरे,”गुरू” क़लम ने तेरी स्याही के

रिश्ते को आदत नाम दिया,रिश्ते में बँध पाओगे क्या


“गुरू”

Friday 22 July 2022

कबुतर बना के रखा है….kabutar bana ke rakha hai….a poem by “Guroo”

         


जादूगरनी सा मायाजाल बिछा के रखा है

मुझ जैसे कईयों को कबुतर बना के रखा है


घिस-घिस के मुराद पूरी करवाती है मालकिन बनकर

जिन्न बनाकर मुझे,अपने पर्स में चिराग़ छिपा के रखा है 


काला जादू चलाया है मेरे अपने ही दोस्तों पर उसने

कमीनों ने मुझे दुश्मन ,उसे हमदर्द बना  के रखा है


वो मेरे उड़ाए कबुतर तक मार देती,पक्का यक़ीन है 

ये तो शुक्र है ख़ुदा तुमने इंटरनेट चला के रखा है


इसे मासूमियत समझो या कहलो कि मैं पागल हूँ

उस से ज़्यादा मालूम है,जितना उसने छिपा के रखा है


निशानियों को उसका कलंक बनाने का हुनर रखता हूँ

मसला ये है कि “गुरु” उस से दिल लगा रखा है….

Friday 8 July 2022

सारी उम्र तुम्हें मेरी कमी रहे..sari umr tumhe meri kmi rahe…a poem bu “Guru”

 होंठो पर मुस्कान ,आँखो में नमी रहे

सारी उम्र तुम्हें मेरी कमी रहे


जुग-जुग जीयो तुम,उम्र लम्बी रहे

ताउम्र ज़िंदगी में मेरी कमी रहे


दो तारीफ़ों में आसमाँ उड़ना है तो उड़ो

बेहतर होगा पैरों तले जमीं रहें


हर साल नए रिश्ते में ना बंधो पगली

मेरी चाहत बनी रहे,तेरी इज्जत बनी रहे


ख़ुदा करे तुम्हारी उम्र बहुत लम्बी रहे

सारी उम्र तुझे मेरी कमी रहे

Tuesday 28 June 2022

जो दिखाई देता है…a poem by “guru kataria”




वो हर बार सफ़ाई देता है

वो…वो नही है..जो दिखाई देता है…


झूठी मोहब्बत में ज़हर है,मुझे मालूम है

मैं आँख बंद करता हूँ,वो पिला ही देता है


दोस्ती से बढ़कर मैंने कुछ नही समझा

मेरे दोस्त को मेरा दुश्मन वो बना ही देता है


मोहब्बत है उस से,ग़लतियाँ भी सर माथे

मैं तो माफ़ी देता हूँ,पर वक़्त तबाही देता है


लाख”गुरु”नक़ली सही,असली झूठे आशिक़ सारे

अब ना पीछे से चिल्लाना,मुझे कम सुनाई देता है…..


                                                    “गुरू”

Monday 20 June 2022

दिल तोड़े बहुत …dil tode bahut poem by guroo charan




 टूट गए थे इश्क़ में एक बार थोड़े बहुत

फिर दिल टूटा तो बदले में तोड़े बहुत


मुझे पत्थर कहकर वो मुसकाए लाख भले

मेरे मोम से दिल ने खाए हैं हथोडे बहुत


जो बेहोश हुए तो फिर कहाँ होश आया

लेके आग़ोश में अपनी झँझोड़े बहुत


बस तेरा आँकड़ा छू नही पा रहा है “गुरू”

कर-कर के इश्क़ झूठे हमने भी छोड़े बहुत


“गुरू”

Thursday 14 April 2022

क्या मिला मेरा शहर छोड़कर..kya mila mera shehar chhodkar “a poem by guru”




 मीठी सी ज़िंदगी में ज़हर घोलकर

क्या मिला तुझे मेरा शहर छोड़कर


कभी-कभार मिलने आने का वायदा

क्या मिला मुझसे संगीन झूठ बोलकर


गुजरात का जोहरी,मेरा हीरा परख गया

मेरा सब बिक गया तेरी यादें छोड़कर


तेरा पुराना घर मेरे लिए दरगाह ही समझ 

तेरी छत्त निहारता हूँ मेरी छत्त से आँखे खोलकर


हँसना,कभी रोना,मुनासिब हो तो मिलना कभी 

“गुरू” को देखना रिश्तों की गाठें खोलकर

Tuesday 22 March 2022

Meri aadat hai buri मेरी आदत है बुरी poem by guru

 मेरी आदत है बुरी,तुम्हारी चाहत है बुरी

हर पल नई आरज़ू,तुम्हारी इबादत है बुरी


दिल से जिसको भी चाहो,मिलता ज़रूर है

मेरी-तेरी राह में,ये कहावत है बुरी


मैं अपने ज़ोर पर तुमसे मिलने आऊँगा

वहम को पाले बैठी मेरी ये ताक़त है बुरी


तुमसे अब  भी आस है,रूबरू हो जाने की

जब तक ये आस है,तब तक शिकायत है बुरी


सबके आगे न सही,पर भीड़ मे तो साध लो

सीरत मेरी तुमसे जुड़ी,चाहे सूरत है बुरी


मैं तो चायक तेरा,आस फिर किस से करूँ

तेरी इबादत तुम समझो,”गुरु चरण”की आदत बुरी


“गुरु चरण”

Wednesday 16 March 2022

रंगों का त्योहार है क्या तुम भी मनाओगे........(rango ka tyohar hai kya tum bhi manaoge)




रंगों का त्योहार है क्या तुम भी मनाओगे........

बेरंग  मेरी जिंदगी में क्या रंग बन मिल जाओगे......

  एक रंग उम्मीद का  लगाना.....

 जो मैं तुमसे कोई वादा करूँ...

 तुम भी वो वादा निभाना.....

  गर वादा किया तो फिर अच्छे से निभाओगे......

  रंगों का त्योहार है क्या तुम भी मनाओगे........


 एक रंग ख्वाबों का भी लगाना....

  मेरे पास आना और हल्का सा मुस्कुराना.....

आंखों से आँखें मिलाकर सपनों का महल सजाओगे....

 रंगों का त्योहार है क्या तुम भी मनाओगे........


एक रंग हिम्मत का भी लगाना ...

मैं साथ खड़ा रहा तो कंधे से कंधा मिलाना......

दुनिया के दो- टूक सवालों का जवाब दे पाओगे....

रंगों का त्योहार है क्या तुम भी मनाओगे........


सब रंग मिल जाये तो और इश्क का रंग बन जाये .....

तो ये रंग मुझको जितना हो सके लगाना......

इस इश्क के रंग में .....फिर तुम भी रंग जाओगे

 रंगों का त्योहार है क्या तुम भी मनाओगे........

Tuesday 15 March 2022

मुझे जीना नही आता, मुझे मरना नही आता….(mujhe jeena nahi aata..mujhe marna nahi aata)…a poem by “guru”




मुझे जीना नहीं आता,मुझे मरना नही आता

सिवा तुम्हें याद करने के मुझे कुछ करना नहीं आता


मुझे हँसना नहीं आता,मुझे रोना नही आता

एक तुम्हें छोड़कर, मुझे किसी और का होना नही आता


मुझे चलना नही आता,मुझे रुकना नही आता

अगर तुम साथ ना हो तो गिरकर उठना नही आता


मुझे लिखना नही आता,मुझे बिकना नही आता

मैं टूटकर रोऊँ,सिवा तेरे किसी ओर को दिखना नही चाहता


“गुरू” को खुद अपनी लिखी बात को पढ़ना नही आता

मैं तुम्हें पा नही सकता और खोना भी नही चाहता


                                       “गुरू”

Monday 14 March 2022

नादान परिंदे बड़े हो गए….(nadan parinde bade ho gaye)… a poem by “guru”

 


नादान परिंदे बड़े हो गए

पैरों पर अपने खड़े हो गए 


साथ दिया जिनका आसमान बनकर हमने

आज पंख उनके,हम ही से बड़े हो गए 


मैंने चाहा कि वो अपनी क़ाबिलियत पहचान ले

दौड़ाया घोड़े सा उनको,और हम लँगड़े हो गए


वो उड़े ऐसे,की दूरियों का अहसास करवाकर ही माने

जो दरारें हम भरने चले थे वही खड्डे हो गए


नई उड़ान का चस्का इतना कि अकेले उड़ने लगे

ऊँचा इतना उड़े कि सारे रिश्ते छोटे हो गए


“गुरु” ऐसा ही रहा,हालत भले बद्द से बद्दतर हो गए 

समझाने लगे तो हम भी दुश्मन हो गए

सब जगह बस तुम ही तुम ..(sab jagah bus tum hi tum) a poem by “guru”

बाहर तुम,भीतर तुम,हर जगह बस तुम ही तुम

मुझमें भी मैं हूँ कहाँ, मुझमे भी बस तुम ही तुम..


धूप तुम,तुम छाँव हो,दर्पण भी तुम,तुम्ही अक्स हो

हो तुम्ही पत्ते,फूल,फल,लहलहाता दरख्त तुम...


शौंक तुम,आदत भी तुम,आदि-अनादि अनन्त तुम

बारिश तुम,पतझड़ भी तुम,जिंदगी के बसन्त तुम



सूरज भी तुम,तुम चाँद हो,तारा भी तुम,गुलाब तुम

ज़ाम तुम,भगवान तुम,तुम सुबह और शाम तुम


तुम भी तुम,"गुरू" भी तुम,सृष्टि सकल कायनात तुम

ज़ज़्बात तुम,हालात तुम ख्वाब तुम मेरे दिल की बात तुम



                                                                                       "गुरू”

Friday 11 March 2022

बस तुम मेरे साथ हो ..bus tum mere sath ho “poem by guru”


चार बरस की सजा मुझे हो या आजीवन कारावास हो
बस तुम मेरे साथ हो मुझे इतना सा विशवास हो



रस्सी आवत जात तै सिल पर पड़े निशान
सील बने दुनिया सारी, मेरा रस्सी सा प्रयास हो



टूट-टूट के बिखरुं चाहे,उम्मीद है फिर जुड़ जाऊंगा
पानी जैसा हो धैर्य मुझमे,अग्नि जैसा अट्टहास हो



मुझसे किये वायदे सारे, मुझे भूल तुम्हे निभाने होंगे
धरती-पाताल चाहे जहाँ रहूँ, तुम्हारे हंसने का आभास हो



बस तुम मेरे साथ हो,मुझे इतना सा विशवास हो.......


                                                       
“गुरु”


Tuesday 8 March 2022

माया ......MAYA a poem by "guru"

                                                          माया


ऊपर से निचे तक सारे आबंध खोलकर

भीतर तक देख ली माया,अच्छे से टटोलकर
सन्तों के लाख वचन भी समझा नहीं पाये
कदमो को थाम बैठे तुम,माया के एक बोल पर

रंग में भले चमक,मगर बंदर सी सुंदर है
माया महाठगनी है तो लगती बेहद खूबसूरत है
ये एक हाथ,एक दिल में,नही बस पाई कभी
पागल ना बन इसके लिए ना झोल-झाल कर

ये माया नहीं तेरी,ना होगी कभी उसकी
सब के सब लड़ के मर गए,राक्षसो की हुई ना ऋषि मुनि की
माया में दम है कितना,आकर के मुझसे पूछो
देखी है हमने ताकते,गलियो में इसका रस्ता रोक कर

नागीन सा फन उठाती है ये बात बात पर
लोगो को जगाती है ये रात रात भर
वाकिफ है"गुरु"भी इसके शब्दों  से भली भांति
देखा है इसको हमने तराजू में तोलकर

बच्चों से क्या उलझना,हमसे मोल भाव् कर
ताक में बैठे है  हम छाती के बटनों को खोलकर
कब तक यूँ ही लोगो को पागल बनाओगी
आकर "गुरु"से भी नजरें दो-चार कर....

                                                                "गुरु"

Monday 7 March 2022

यकीं कीजिये...(Yakin kijiye...)

यकीं कीजिये

                               
यकीं कीजिये


आसां नही है...आंसू रोक पाना...यकीं कीजिये

आसां नही...तुमसे दिल लगाना...यकीं कीजिये

यकीं है हृदय को,मेरे बुलावे पर आए हो
सताया है छः माह,मनाने अब आये हो
आसां नही है...तुमसे रूठ पाना...यकीं कीजिये...

मैं भागा बहुत,दीद भर को तेरी
तेरी आँख-मिचौली,भीगी पलकें मेरी
आसां नही है...भीगी पलकें सुखाना...यकीं कीजिये

प्रेम तुमसे प्रिय,प्रसंग तुम ही रचो
घर आये हो सजन ,एक बार तो दिखो
आसां नही है...तुम्हे देखे बिन जी पाना...यकीं कीजिये

बिन सजनिया देखो,मैं बिरहा सह रहा हूँ
प्रेम मन मे समेटे,तुम्हे देखे बिन रह रहा हूँ
आसां नही है... "गुरुचरण" प्रेम निभाना...यकीं कीजिये
आसां नही है...तुमसे दिल लगाना...यकीं कीजिये


                                                                                  "गुरु"

Friday 4 March 2022

बिरहा यही है (Birha Yahi Hai)...

                                                                          बिरहा यही है....


बिरहा यही है....

मैंने जो सही है...बिरहा यही है....



हमसे पूछो के ये दिन हमने कैसे सहे हैं
आँखों मे आँसू लेकर,हम कैसे रहे हैं
मौज-बहारें सब तुमसे जुड़ी हो जब
कैसा फर्क फिर हम,जिये या मरे हैं...

इंतज़ार में सब रातें कटी हैं
बिरहा यही है...बिरहा यही है...

तुम्हारे समय मे शामिल,क्यों मैं नही हूँ
प्यारा नही हूँ,,,या तुम्हारा नही हूँ
प्यारा भी हूँ गर...तुम्हारा भी हूँ गर
तुम ही कहो फिर क्या,ये दूरी सही है

तेरी दीद बिन  मेरी सांसे थमी हैं
बिरहा यही है...बिरहा यही है...

न खाना ही भाता,न पानी दिल को पचता
सब कुछ वही है, पर अच्छा नही लगता
खुश तो नही मैं, पर रहता हूँ हंसता
तुम न मिलो तो फिर,मेरे पास है क्या बचता


मन मे ललक तेरी आँखों मे छवि है
बिरहा यही है....बिरहा यही है....

                                                                   "गुरू"

Thursday 3 March 2022

इतना सा व्यवहार है ( itna sa vavhar hai)

इतना सा व्यवहार है


 नज़र मिलाई,हाथ मिलाया

इतना सा व्यवहार है

मुँह में प्रशंसा,दिल में गाली
यही आज का शिष्टाचार है


कुछ जगत की देखा देखि,कुछ दुनियादारी का सार है
आज के सदाचार में,टीवी भी कुछ आधार है


लब-लब पर है मधुर शब्द,अंदर तीखी तेज़ कटार है
नोटों से है रिश्ते-नाते,नोटों से संसार है


प्रेम प्यार को फुर्सत कैसी,सब कुछ बस व्यपार है
नंगा ज़िस्म,नंगे नोट, देख लटकती लार है


कैसे संस्कार बने यहाँ,कैसा ये विस्तार है
फ़टे चिथड़ों में ज़िस्म जब,बिकता बिच बाज़ार है।।।।।

                                              "गुरू"

Tuesday 1 March 2022

जो नाराज है मुझसे,वो मुझसे दूर ही अच्छे.....( Jo naraj hai mujhse....vo mujhse door hi achhe...)

https://guruchk.blogspot.com


                            






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वो मुझसे दूर ही अच्छे


जो नाराज है मुझसे,वो मुझसे दूर ही अच्छे

उनकी सस्ती दवा से तो मेरे नासूर ही अच्छे

मगर इतनी समझ देना कि दोनों में फ़र्क़ समझें


अगर हीरे की ख्वाइश है तो फिर अहसास को समझो
कांच में तुम भी दिखोगे,इस विशवास को समझो
धुप में बिखर के तो चमकते कांच के टुकड़े भी है
अगर हीरे ही बने हो तो फिर जरा रात को चमको


बिना बोले जमाना सबको नया पाठ पढाता है
पैसा धुन बनाता है,जमाना साथ गाता है
कभी चाहत थी मेरी तो गरीबी मेरे साथ तुम चलती
अब मैं पैसा कमाता हूँ,मुझे हर कोई चाहता है


मैं लेकर होंसले के आँसू, लड़ा हूँ सदा खुदगर्जी से
रुलाया है बेहद मुझको,मेरी चाहत ने बेदर्दी से
मेरी हालत पर ना तुम रहम खाना मेरे मौला
मैं चाहता हूँ वो मेरे पास आये बस अपनी ही मर्जी से

अपनी ही मर्जी से.. अपनी ही मर्जी से.....        


                                                                           "गुरू" 


                                                   https://guruchk.blogspot.com