दंड-विधान
मुझे समझना है वह दंड विधान
जो मेरे गलती करने पर
बनाता है मुझे पापी
और
तुम्हें महान
एक बंधन मे बंधे हम दोनों
बराबर थे
दोनों ही एक धरा पर थे
फिर एक रोज
हुई मुझसे गलती ;और हमारा रिश्ता
बन गया तुमपर बोझ ?
चलो मुझसे गलती हुई
बना गया मैं अपराधी
पर ;मुझे सजा देने की
तुम्हें किसने दी आजादी ???
अस्वीकार्य है वो दंड विधान
जो सजाएँ बांटता हो
लिंग-भेद के अनुसार
रिश्तों के अनुसार
कमाई के अनुसार
जरूरत के अनुसार
गलती एक
पर पुरुष और नारी को सजा मे भेद
रिश्ता वही ;मेरी गलती तो गलती
तुम करो तो वही सही
क्या खुद को सही साबित कर पाते ?
क्या इन गलतियों पर सबको वही सजा दे पाते ?
मा-पिता को भी ;भाई बहन को भी???
अगर उनसे भी यही
या शायद इस से भी बड़ी गलती हुई होती
या
शायद हुई भी होगी..।।।
पर...... तुमने छिपा ली होगी
और बात जब मुझपर आई तो
तुम करने लगे इंसाफ
भूल गए सबके अपराध
थोप दी मुझपर सारी सजा
बन गए मेरे खुदा
ये कैसा इंसाफ है
तुम ज्यादा कमाते हो
तो तुम्हें सब माफ है
एक को सब सजा दी जाएगी
दूसरे की जरूरत है तो गलती भूला दी जाएगी ?
समझाओ मुझे वो सामाजिक संविधान
जिसमे अपराध और गलती
दोनों ही एक समान
तुमसे गलती हुई
तुम माफ हुए
मुझे गलती हुई तो मानो
गलती नहीं पाप हुए
लाओ जरा संज्ञान मे
पैमाना आँकने का क्या है इस दंड विधान मे
दवा और नशा
श्रेया और प्रेया
आलिंगन और आकर्षण
चाहत और जरूरत
अपशब्द किन्तु अपनापन
समझाओ दोनों मे अपराध क्या है और गलती क्या ?
ये कैसा विधान है
जो हर हल पर प्रश्न खडा कर देता है
केवल सजाओं के लिए गलतियों को
छोटा और बड़ा कर देता है
बकरी चोरी छोटी,पैसा चोरी अपराध बड़ा
क्यूँ गाली देना गलती छोटी,क्यूँ चरित्र हनन अपराध बड़ा
क्यूँ तन पर घाव छोटे और मन पर घाव आघात बड़ा
क्यूँ माफी छोटी, क्यूँ इंसाफ बड़ा
क्यूँ माफी छोटी-------क्यूँ इंसाफ बड़ा
लंबा रस्ता तय करना है
इस दंड विधान को एक तरफ रखना होगा
और महत्व देना होगा
इंसाफ से बढ़कर माफी को
बीति जिंदगी भुलकर बाकी को
प्रेम मे तुम्हें समर्पित हूँ
ऐसा झूठा दंड विधान मेरा हकदार नहीं
मतभेद मुझे स्वीकृत है
मनभेद किंचित भी स्वीकार नहीं …
'गुरु'*
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