आदत
अक्सर पूछ लेती हो
कि हमारा क्या रिश्ता है ???
एक दूजे के लिए दिल मे इतना प्यार क्यूँ बस्ता है ???
भरी भीड़ मे देख के तुझको मेरा दिल हँसता है
बिन तुझसे बात किया एक दिन भी नहीं कटता है
तेरे मेरे बीच मे.....”आदत” का रिश्ता है....
तुम मेरी ओर मैं तुम्हारी आदत हूँ ....
आदत जो छुड़ाए नहीं छुटती
जिसे सब कहें की बुरी लत है
छोड़ दो...नुकसान देने वाली आदत है
लेकिन...सब जानकर भी...सच मान कर भी...
मन मार कर ही ...
ये ललक नहीं छुटती...
हम बुरे ही सही...मगर
एक दूसरे की आदत नहीं छुटती...
इस आदत के बिन ज़िंदगी मे क्या बचता है ...
आदत बुरी सही...भली सही ...लेकिन
यही रिश्ता है....
एक दूजे से करने को जब बात ही नहीं होती
तो भी भला हम बात क्यूँ करते हैं
एक दूजे संग हँसकर हम दोनों
अपनेपन का एहसास क्यूँ करते हैं
क्यूंकी हमे आदत है .....एक दूसरे की.......
इतनी तो मोहब्बत नहीं की देखना जरूरी हो
विडियो काल पर आँखें सेंकना ज़रूरी हो
लेकिन .....एक दूजे को देखे बिन
दिन तो ढल जाता है....पर रात नहीं होती............
क्यूंकी हमे आदत है एक दूसरे की ...
वो राज भी हम आपस मे बाँट लेते हैं
जो दूसरों से ताउम्र छिपाते रहे हैं
मज़ाक से लेकर हवस तक
एक दूसरे की चाहतों मे निभाते रहे हैं .....
काम आते रहे हैं ...
क्यूंकी ...हमे आदत है एक दूसरे की.....
हवस से शुरू हुआ हमारा रिश्ता
नफरत को पार करते हुये
आदत तक आ पहुंचा है
बस ...रिश्ते को निभाने की दोनों तरफ से
चाहत बनी रहे.....
ताउम्र “गुरू” ओर तुम्हारी
ये आदत बनी रहे............
आदत बनी रहे.........
‘गुरू’