Sunday 26 February 2017

दर्द चाहकर भी ना सह सका

दर्द चाहकर भी ना सह सका
बिना रोए रह ही ना सका
ऐसा नही की मैं पत्थरदिल हूँ
बस हालात ऐसे थे कि कह न सका

आँख से पानी दिल से खून के आंसू रोया हूँ
शादी की खबर से लेकर अब तक चैन से न सोया हूँ
काम और शौंक,ज़रूरत और भी हैं मेरी
पर कुछ याद नही है तुझमे इतना खोया हूँ

पुरानी यादो में जाकर खुद से कहता हूँ की काश सब बदल जाये
मैं तेरे और तुन मेरे मुताबिक ढल जाये
यादों से निकलता हूँ तो दहाड़ मारता हूँ
अ-ख़ुदा जैसे भी हो बस ये वक़्त निकल जाये

कुछ भी खाया नही
ऐसा नही के खुद को समझाया नही
मेरी खुद की दलीलों में बहुत दम था
पर न जानें क्यू खुद की समझा पाया नही

"गुरू" तो हर बार बेबस सा बनकर रह गया
कभी तेरे तो कभी खुद के हिस्से का ग़म सह गया
रोते-बिलखते आत्मा मर गई मेरी
बनकर मैं एक ज़िंदा लाश खड़ा रहा गया

विदा तुम शहर से हो रही हो
खालीपन मेरे दिल में आ रहा है
आजमाकर नुस्खे सब देख लिए "गुरु"
ये दर्द है कि फिर भी बढ़ता जा रहा है

मिलो किसी मोड़पर तो मुस्कुराना ज़रूर
याद आती है या नही,आँखों से बताना ज़रूर
तेरी आजमाइश ने मेरी जिंदगी काली बना दी
मेरे मुक़ाबले अब नए रिश्ते को आजमाना ज़रूर

एक मौका मिला और तुमने जिंदगी छाँट ली
मेरे हिस्से में ग़म और अपनी झोली में खुशियां बाँट ली
आज तक तो तुम्हारे सिवा किसी को महसूस नही किआ
तुमने आगोश बदल बदलकर ज़िन्दगी काट ली

दिल दुखी है मगर फिर भी दुआ दे रहा है तुम्हे
खुदा करे की किसी मौड़ पर कभी मिलो तुम हमे
खुश रहने की मेरी दुआ को साकार करना
बस भूल जाओ तुम मुझे,भूलता हूँ मैं तुम्हे

छोड़ देंगे अब तेरा इंतेजार करना
ना मैं करूँगा ना तुम मुझे प्यार करना
बस आखिरी बार वही पुरानी दुआ मांगता हूं
नये जीवन में खुश रहना और खुश रखना