Tuesday 6 June 2017

लगता है तु आस-पास कहीं है

शहर की हवा में खुशबू सी है
लगता है तु आस-पास कहीं है

सितारे भी आज ज्यादा चमक रहे हैं
अपनी मस्ती में परिंदे चहक रहे हैं
मेरा वहम है या सब सही है
लगता है तूँ आस-पास कहीं है

आज छत पर ठंडी हवा कैसे चल रही है
ये फूलों की डाल अपने आप क्यों खिल रही है
मौसम बदल गया या तबियत में कोई कमी है
लगता है तूँ आस-पास कहीं है

ये फ़िज़ा अपना रंग कब तक दिखाएगी
इंतेजार में हूँ,तूँ नज़र कब आएगी
"गुरू"को शुरू से तुम्हारी ज़रूरत रही है
अहसास होता है तूँ, आस-पास कहीं है।

तेरी मौजूदगी इस मौसम में शुमार तो है
इस दूरी में भी मुझे तुमसे प्यार तो है
मैं भी सही हूँ,मौसम भी सही है
ये दावा है तूँ आस-पास कहीं है

बस सफर तुम खत्म हुए,आकर एक दीदार पर

बस सफर तुम खत्म हुए,आकर एक दीदार पर
जिसको दिल से चाहा उसको जीते खुदको हार कर

सारे शहर में चक्कर काटे, काश कहीं मिल जाओ तुम
नहीं मिले तो रोकर बैठा,आखिर मन को मारकर

जब देखा तुम तो घर पर हो,खुद पर ही मुस्काया मै
खुद की गलती पर क्या करता,खुद ही खुद को झाड़कर

ध्यान तुम्हारा और कहीं था और मेरे नैनो में थी तुम
पलको में तुमको ले चले,नैनो में छवि उतारकर

अब तक मैं इंतेजार में हूँ,काश कभी ढूंढोगी मुझे
तेरे भी नैना बरसेंगे,"गुरू"के दीदार पर