मेरी आदत है बुरी,तुम्हारी चाहत है बुरी
हर पल नई आरज़ू,तुम्हारी इबादत है बुरी
दिल से जिसको भी चाहो,मिलता ज़रूर है
मेरी-तेरी राह में,ये कहावत है बुरी
मैं अपने ज़ोर पर तुमसे मिलने आऊँगा
वहम को पाले बैठी मेरी ये ताक़त है बुरी
तुमसे अब भी आस है,रूबरू हो जाने की
जब तक ये आस है,तब तक शिकायत है बुरी
सबके आगे न सही,पर भीड़ मे तो साध लो
सीरत मेरी तुमसे जुड़ी,चाहे सूरत है बुरी
मैं तो चायक तेरा,आस फिर किस से करूँ
तेरी इबादत तुम समझो,”गुरु चरण”की आदत बुरी
“गुरु चरण”