अक्सर पढ़ता हूँ तुम्हे रातों में....
देखता हूँ कोरे कागज में तस्वीर तेरी
ओर पलटता हूँ पन्ने उस कहानी के
जो आपबीती है मेरी
आंखों में सपने,किताब हाथो में
अक्सर पढ़ता हूँ तुम्हे रातों में....
पढ़ते-पढ़ते जब आँख थक जाती है
तब सूरत तुम्हारी मेरे सीने से लग जाती है
बिछकर मुझपर तेरे दुप्पट्टे की तरह वो किताब सो जाती है
रखा क्या है बातों में..
अक्सर पढ़ता हूँ तुम्हे रातों में....
करवट लेता हूँ तो बाहों में सहेज लेता हूँ..अहसास वही है
आँख खुलती है तो खोल लेता हूँ वही पन्ना,जिसमे उंगलिया दबी हैं
चेहरा दिमाग मे,,,हाथ मेरे हाथो में
अक्सर पढ़ता हूँ तुम्हे रातों में....
सो जाता हूँ,,तकिये के नीचे छिपाकर तुम्हे
करके आँख बंद सोचता हूँ
"गुरू"मिलता क्या है तुम्हे
रखता हूँ यादों का बुकमार्क पन्नो में दबाकर
ताकि धुँधली न पड़े स्याही से सजे सपने,,,किन्ही हालातो में
अक्सर पढ़ता हूँ तुम्हे रातों में....
अक्सर पढ़ता हूँ तुम्हे रातों में....