Monday 31 October 2022

एक उलझन है...सुलझा दो ना.....ek uljhan hai..suljha do na...a poem.by guru

 एक उलझन है........सुलझा दो ना

हम में क्या रिश्ता है..समझा दो ना...


क्यों तुम्हारा हर पल इंतजार रहता हैं

बात करने को दिल बेकरार रहता है

पीने वाले पिएं दिन रात गांजा, शराब 

मुझ पर तो तुम्हारा नशा सवार रहता है

ये कैसे उतरेगा...कोई तो दवा दो ना

उलझन है...सुलझा दो ना


प्यार भरे तानो से क्यों घायल करते हो

चौबीसों घंटे दिल पर क्यों छाए रहते हो

दिल जिस्म नशा याद सपने तक तेरे 

फिर भी कहो; क्यूं बन के पराए रहते हो 

राज को राज कब तक रखें... छपवा दो ना

उलझन है...सुलझा दो ना...


रोज के कामों में जीना दुश्वार रहता है 

तेरे इश्क में दिल ये बीमार रहता है

यूं तो आलस से भरा रहता है बदन बावरा

पर तुम जब भी पुकारो,"गुरू"तैयार रहता है 

खूबसूरत बहुत हुं... वहम मिटा दो ना

उलझन है...सुलझा दो ना...

Thursday 20 October 2022

ज़रूरी था ….Zaruri tha….a poem from “Guroo”

 मेरे ही संग खट्टे-मीठे ख़्वाब का बुनना ज़रूरी था 

भीड़ भरी दुनिया में,क्या मुझे ही चुनना ज़रूरी था 


ग़र ज़हर थी तुम तो ज़हर सा बनकर ही रहती 

मिश्री सा मीठा बनकर,क्या मुझमें घुलना ज़रूरी था


मैंने सालों तक ख़ुद को परखा है,तुझे भूलना नामुंकिन है 

ख़ुद को परखने के लिए,इस राज़ का खुलना ज़रूरी था


तेरे महँगे फ़ोन की ब्लॉकलिस्ट में नंबर मेरा सेव पड़ा है 

दूसरों से तेरी रिकॉर्डिंग माँगे,आवाज़ सुनना ज़रूरी था 


राह अलग-चाह अलग,जब अलग-अलग जीना मरना

लाख सितम के बाद तेरा ,क्या छत पे दिखना ज़रूरी था


“गुरु” ने साँचा बनकर के,क़ीमती हीरे सा सँभाला सदा तुम्हें 

चोरी छिपकर ,बाज़ारू बनकर बिकना क्या ज़रूरी था


                                                                               “गुरु”

Sunday 16 October 2022

अब उसका रहना नहीं चाहता…ab uska rehna nahi chahta..a poem by guru

 

www.guruchk.blogspot.com


 सालों से उसे भूलना चाहता हूँ ,लेकिन भुला नहीं पता

वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता 


उसे भूलने में मुझे अब बस इतनी सी दिक्क्त बची है दोस्तों

उसे भूलूँ तो उसके बदले में कोई भी याद नहीं आता 

वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता 


वो दौर और था कि,उसका दीवाना बना घूमता था मैं

अब वो घर आकर भी मिले,तो मैं मिलना नहीं चाहता 

वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता


मुझे याद है कि हर पल में “गुरु”सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी का था

अब टुकड़ों में भी बँट जाऊँ,तो उसके हिस्से आना नहीं चाहता

वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता


“गुरु”