Sunday 27 February 2022

ओह,,,, तुम हो,,,,,(oh...tum ho............)


 


ओह,,,, तुम हो,,,,,


जो जिम्मेदारी से सारा परिवार सम्भालती हो
सबसे पहले जगकर घर-बार सम्भालती हो
ओह----तो तुम हो

अपने हाथों की चाय से सबके दिन की शुरुआत करती हो
सुबह शुरू होकर रात तक काम करती हो
रसोई को ही अपना घर समझती हो
घर मे घूमने को ही पार्क की सैर समझती हो
जो रेडियो,टीवी कम और माँ-बाबूजी की आवाज ज्यादा सुनती हो------

ओह---तो तुम हो।।।


चौबीस घण्टे चौकस रहकर भी हंसती रहती है
सारा दिन व्यस्त रहकर भी 'घर मे काम ही क्या है' कहती है

जिसे टेक्नोलॉजी ओर संस्कार दोनों का ज्ञान है
जिसके लिए घर ही तीर्थधाम के समान है
माँ के साथ zee tv भी देखती है और बाबु जी के साथ सत्संग भी
जिम्मेदारी का अहसास है और बड़कपन,लड़कपन भी
जिसके पास खुद के लिए वक्त नही होता
ओह---तो तुम हो।।।।

जो सब काम करके भी डांट खाने को आशीर्वाद कहती हो
जो खुद से ज्यादा मुझे सहती है
एक दिन भी यहाँ-वहां हो तो जिसकी कमी अखरती है
जो मुझसे ज्यादा मुझे समझती है
जिसे मेरी खुशियाँ ही अपनी खुशियां लगती हैं
ओह---तो तुम हो।।।

जो टिवी का रिमोट मेरे पास जानबूझकर भूल जाती है
मेरे नहाने से पहले पानी, तौलिया, साबुन सब धर आती ही
जो मेरी पसंद के भोजन को अपनी पसंद बना बैठी
आधी रात को मेरी खातिर चुल्हा सुलगा बैठी
ओह---तो तुम हो।।।।।


सब जिससे प्यार करते हैं
मुझसे ज्यादा जिसपर विश्वास करते हैं
मुझसे ज्यादा जिसकी चिंता करते हैं
जिसके साथ रहकर मां-बाबुजी जिसका ध्यान रखते हैं

ओह---तो तुम हो।।।।।।

तुम आई तो झांझर से नींद खुली
दिल खुश हुआ कि तुम मिली
"गुरू"हुआ प्रसन्न प्रिय"ऋतु"तुमको पाकर
तुमने घर को बना दिया स्वर्ग मेरे घर आकर।।।

“गुरू”