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सालों से उसे भूलना चाहता हूँ ,लेकिन भुला नहीं पता
वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता
उसे भूलने में मुझे अब बस इतनी सी दिक्क्त बची है दोस्तों
उसे भूलूँ तो उसके बदले में कोई भी याद नहीं आता
वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता
वो दौर और था कि,उसका दीवाना बना घूमता था मैं
अब वो घर आकर भी मिले,तो मैं मिलना नहीं चाहता
वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता
मुझे याद है कि हर पल में “गुरु”सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी का था
अब टुकड़ों में भी बँट जाऊँ,तो उसके हिस्से आना नहीं चाहता
वो जितना समझती है,उतना भी उसका रहना नहीं चाहता
“गुरु”