-----*- त्योहार का दिया-*-----
(कल्पना कीजिये की आप घर की मंडेर पर रखे हुये एक दिये हैं,,)
तेरे मायके की मंडेर पर रखे दिये सा हूँ
वो दिया जो त्योहार पर जलाया जाता है
बस एक बार ....ओर उसके बाद किसी को कोई खबर नहीं
कि जल भी रहा है या नही
कुछ दिन तक यों ही पड़ा रेहता हूँ मंडेर पर
कभी-कभार हवा से उलट-पलट जाता हूँ
पंछी,मुझे चोंच मारते हैं
इस लालच मे
कि पलटे दिये के नीचे कुछ तो मिलेगा
वो बाती ओर तेल जो तुमने जगमग के लिए डाला था
वो अब मुझे पीड़ा देने लगता है
क्यूंकी
अब उसमे चींटियाँ लगने लगती हैं
मौसम बदला रूत बदली ,मैं मौसम से बेमेल सा हूँ
दिन मे धूप ओर रात मे कोहरा दोनो झेलता हूँ
जब बीत गए कुछ दिन,कुछ रात
तब आई बरसात ;
रात के कोहरे से ठिठुरता हुआ मैं,पानी से भर गया
तुम्हारे घर की छत पर बंदर किस लोभ मे आते हैं?
मुझे उठाते हैं...चबाते है
फेंक जाते हैं ; तोड़ जाते हैं
मेरे शोभामयी किनारों को ,जो तुम्हें कभी पसंद थे
तुम्हारे घर के नन्हें-मुन्नों ने मुझे देखा तो अच्छा लगा
फिर उन्होने मुझे ठोकर मारी
तब निराशा हुई
मैं जा टकराया तुम्हारी मंडेर के छोर से
नीचे जा गिरा ; टुट गया
तुम्हारी मम्मी कि नज़र मुझपर पड़ी थी
जब उनकी चप्पल मुझपर चढ़ी थी
मुझे पहले गाली-गलोच किया गया
क्यूंकी मैं अपनी जगह पर नहीं था
फिर झाड़ू से मुझे नई जगह दी गई
मैं मंडेर की जगह छत के कोने मे सिमटा पड़ा हूँ
मैं दोबारा तब याद आऊँगा
जब मन मार कर उठाया जाऊंगा
डस्टपैन ओर फूलझाड़ू के साथ
फेंक दिया जाऊंगा कूड़ेदान मे
अपमान से
सम्मान से तुम्हारी काम वाली बाई मुस्कुराएगी
कचरे के नाम पर मुझे बाहर फेंक कर
वही कचरा,जिसने त्योहार पर
तुम्हारा घर जगमगाया था
खुद को जलाकर
इतने दुख सहकर
सिर्फ इस इंतज़ार मे कि
इसी बहाने तुम्हें रोज़ देखता रहूँगा
चला गया इसी दुख के साथ कि
काश मुझे फेंकने तो तुम आ जाती
ओर इस आशा के साथ कि
अगले त्योहार फिर आऊँगा
खुद जलकर तुम्हारा घर रोशन करने के लिए
तुम्हारे मुस्कुराते चेहरे को देखने के लिए