Saturday 15 December 2018

त्यौहार का दिया…tyohar ka dia (by guru)


                       -----*- त्योहार का दिया-*-----
            (कल्पना कीजिये की आप घर की मंडेर पर रखे हुये एक दिये हैं,,)

तेरे मायके की मंडेर पर रखे दिये सा हूँ
वो दिया जो त्योहार पर जलाया जाता है
बस एक बार ....ओर उसके बाद किसी को कोई खबर नहीं
कि जल भी रहा है या नही

कुछ दिन तक यों ही पड़ा रेहता हूँ मंडेर पर
कभी-कभार हवा से उलट-पलट जाता हूँ
पंछी,मुझे चोंच मारते हैं
इस लालच मे
कि पलटे दिये के नीचे कुछ तो मिलेगा

वो बाती ओर तेल जो तुमने जगमग के लिए डाला था
वो अब मुझे पीड़ा देने लगता है
क्यूंकी
अब उसमे चींटियाँ लगने लगती हैं

मौसम बदला रूत बदली ,मैं मौसम से बेमेल सा हूँ
दिन मे धूप ओर रात मे कोहरा दोनो झेलता हूँ
जब बीत गए कुछ दिन,कुछ रात
तब आई बरसात ;
रात के कोहरे से ठिठुरता हुआ मैं,पानी से भर गया

तुम्हारे घर की छत पर बंदर किस लोभ मे आते हैं?
मुझे उठाते हैं...चबाते है
फेंक जाते हैं ; तोड़ जाते हैं
मेरे शोभामयी किनारों को ,जो तुम्हें कभी पसंद थे

तुम्हारे घर के नन्हें-मुन्नों ने मुझे देखा तो अच्छा लगा
फिर उन्होने मुझे ठोकर मारी
तब निराशा हुई
मैं जा टकराया तुम्हारी मंडेर के छोर से
नीचे जा गिरा ; टुट गया

तुम्हारी मम्मी कि नज़र मुझपर पड़ी थी
जब उनकी चप्पल मुझपर चढ़ी थी
मुझे पहले गाली-गलोच किया गया
क्यूंकी मैं अपनी जगह पर नहीं था
फिर झाड़ू से मुझे नई जगह दी गई
मैं मंडेर की जगह छत के कोने मे सिमटा पड़ा हूँ

मैं दोबारा तब याद आऊँगा
जब मन मार कर उठाया जाऊंगा
डस्टपैन ओर फूलझाड़ू के साथ
फेंक दिया जाऊंगा कूड़ेदान मे
अपमान से

सम्मान से तुम्हारी काम वाली बाई मुस्कुराएगी
कचरे के नाम पर मुझे बाहर फेंक कर
वही कचरा,जिसने त्योहार पर
तुम्हारा घर जगमगाया था
खुद को जलाकर
इतने दुख सहकर
सिर्फ इस इंतज़ार मे कि
इसी बहाने तुम्हें रोज़ देखता रहूँगा

चला गया इसी दुख के साथ कि
काश मुझे फेंकने तो तुम आ जाती
ओर इस आशा के साथ कि
अगले त्योहार फिर आऊँगा
खुद जलकर तुम्हारा घर रोशन करने के लिए
तुम्हारे मुस्कुराते चेहरे को देखने के लिए

Friday 30 November 2018

Mohabbat.....मोहब्बत...by guru

दिल से तेरी याद भुलाई नही जाती
मोहब्बत तो आती है मुझे,सियासत नही आती

तेरे फैसले में मेरी रज़ामन्दी,मेरी मर्ज़ी से नही
चाहत तो आती है मुझे,बगावत नही आती

मन्नत पूरी ना हुई तो तुम ख़ुदा बदल बैठे
ईबादत तो आती है मुझे,ख़ुदाई नही आती

जुदाई के बाद का आलम कैसे बयाँ करूँ
यादें तो आती हैं,कयामत नही आती

तोहफे में मिली बेवफाई के बाद,आज तक
तूँ बुरी तो लगती है मगर भुलाई नही जाती

ज़ेहन में चलता रहता है यादों का सिलसिला
तन्हा हो जाता हूँ फिर भी तन्हाई नही आती

मुद्दत तक लेटकर शिद्दत से तेरी तस्वीर देखना
आसुँ तो आते हैं"गुरू",राहत नही आती

Thursday 29 November 2018

मैं....main ….by guru

मैं तुम्हे अतिप्रिय था
मुझसे ही तुम्हारा सुख-दुख था
मैं ही समय,मैं ही कलेंडर
मैं ही तुम्हारा सब कुछ था
प्रेम को तुमने युद्ध सा जाना
तुम जीती मैं गया हार
तुम्हारा कुछ सालों का प्यार... प्रिय...कुछ सालों का प्यार

कुछ साल तो सब कुछ था
कुछ साल बाद बचा कुछ भी नही
तब तक मुझसा कोई भी नही था
अब मुझसा दिखता तुम्हे मैं भी नही
दिमाग से बड़ा कोई विश्वासघाती नही
न दीवाने दिल जैसा कोई लाचार...प्रिय
तुम्हारा कुछ सालों के प्यार प्रिय...कुछ सालों का प्यार

दूजो के लिए जीवन सारा
मेरे लिए एक मुस्कान भी नही
मैं वही रहा,तुम बदल गई
भले मुझे तुम जीवन का भूला-बिसरा किस्सा रखो
पर तुम्हारे जीवन मे जितना मेरा है,उतना तो हिस्सा रखो
इसपर ना करो तकरार प्रिय
तुम्हारा कुछ सालों का प्यार प्रिय.. कुछ सालों का प्यार

बेशक तुम कल में बदल जाना,लेकिन मैं आज में अटल रहूँगा
मैं कल तुम्हारा था,आज तुम्हारा हूँ,तुम्हारा ही कल रहूँगा
ये "गुरू"का वचन नही,सिद्धांत है
तुम्हारा प्रेम मेरी शुरुआत,वही अंत है
मेरे प्रेम में सब कुछ तेरा,बिन प्रेम मुझपे तुम्हारा तिनका भर नही अधिकार प्रिय....
कुछ सालों का प्यार तुम्हारा...कुछ सालों का प्यार प्रिय...कुछ सालों का प्यार

Wednesday 28 November 2018

मैं संवाद चाहता था…(main sanwad chahta tha) by guru

मैं संवाद चाहता था,तुम विवाद कर बैठी
भूलकर अच्छी यादें,बुरी सब याद कर बैठी
साल भर तुमसे मिलने की याद में मुस्कुराया मैं
सालभर बाद मिलकर भी तुम अपवाद कर बैठी

भूलकर मेरी चाहत,गैरों से मोह लगा बैठी
अपने शहर में कम दिखती थी,अब अहमदाबाद जा बैठी
सोचता था कि मिलोगी तुम,तो मुस्कुराओगी
साल बाद मिलकर भी,तुम नज़रें चुरा बैठी

लड़खड़ाकर कदम मेरे,अपने कदम सम्भाल बैठी
सारे ही गीले-शिकवे मेरी झोली में डाल बैठी
सालों तक रिश्ते में तुमसे शराफत क्या बरती
मेरे बारे में तुम गलत वहम पाल बैठी

मेरी ओर खुद की ज़िंदगी को बेहाल कर बैठी
मोहब्बत प्रेम का बंधन था पर तुम जाल बुन बैठी
गिला तुमसे नही है कि मुझसे बेवफा थी तुम
गिला है कि सच भुलाकर दूसरों का झूठ सुन बैठी


तुम कई बार बदली हो,अभी तक हम नही बदले
तुम्हारे ज़ुल्म नही बदले,हमारे मरहम नही बदले
हमारी ओर तुम्हारी मोहब्बत में फर्क रहा इतना
तुमने ज़ुल्म नही बदले,”गुरू” ने सनम नही बदले

Monday 24 September 2018

Accha hota.







जान लेकर भी ये सिलसिला तोड़ देती तो अच्छा होता
दोनो में से किसी एक को छोड़ देती तो अच्छा होता....

तेरी चुप्पी ने मुझसे मेरे कई अपने छीन लिए
कुछ पल चुप्पी तोड़ देती तो अच्छा होता

तेरी मुस्कान से अच्छा दुनिया मे कुछ नही ,सच है
एक मुस्कान भी मेरे नाम होती तो अच्छा होता

अच्छा होता ज़हर हलक में मेरे उतार देती तुम
बेवफाई से बेहतर मुझे मार देती तो अच्छा होता

"गुरू" को ग़म देकर हंसने वाली खुश रहो
कुछ ग़म खुद भी उधार लेती तो अच्छा होता

Tuesday 14 August 2018

Achcha lgta.....अच्छा लगता

Achcha lagta....💐

बिन मिले चल दिये,कोई बात नही
मिलकर जाते तो अच्छा लगता

महफ़िल में सब तेरे थे,मुझको झोड़कर
झूठे मन से अपना कह जाते तो अच्छा लगता

एक नजर देखा मुझको,वो भी मन को मारकर
उस पल भी गर मुस्काते तो अच्छा लगता

दिल ही दिल मे कोसा मुझको,मुँह से कुछ न बोलकर
मुँह पर मुझको दो-चार सुनाते तो अच्छा लगता

दो बार सामने से गुजरे,आते हुए,जाते हुए
सामने एक बार ठहर जाते तो अच्छा लगता

सुना है "गुरू"की मौत से उन्हें फायदा बहुत होगा
उनके लिए मर भी जाते तो अच्छा लगता

Friday 29 June 2018

कुछ तो बता...ज़िंदगी


ये उलझे-उलझे से रास्ते
रुके क्यूँ हैं मेरे वास्ते
पल-पल बदलती उलझने
क़दम-क़दम पर हादसे
कुछ तो बता ....ज़िंदगी....

वो समझे कुछ ओर मैंने कुछ कहा
मेरा अपना दिल,मुझसे ख़फ़ा
सच-सच कहो,क्यूँ मौन हो
तुम्हें रुसवाइओ का वास्ता
कुछ तो बता ...ज़िंदगी.....

मेरे दर्द में भी प्यार है
दिल आज भी तैयार है
पर तुम बदल सी क्यूँ गई
क्यूँ ना पहले सी रही
बोल..मुझसे बात कर
कुछ तो बता...ज़िंदगी

“गुरू”ग़ैर बनकर रहा...रहने दो
दिल में जो ग़ुबार है...कहने दो
तुम ख़ुद सुनो, ओर जवाब दो
गुनाहों की सज़ा दो,या हिसाब दो
यूँ बवाल ना कर ज़िंदगी
कुछ तो बता ...ज़िंदगी

Thursday 21 June 2018

ज़िंदगी





कोने से फटे वो ख़त सारे
जिनकी लिखाई धुँधली पड चुकी
तेरे जहन में मेरी यादों जैसे हैं
सारी यादें धुँधली पड़ चुकी
मेरा दिल तेरी यादों का घर है
इल्ज़ाम सारे अब भी मेरे सर है
नाराज़ ना हो ज़िंदगी...नाराज़ ना हो ज़िंदगी

तेरी शिकायत जायज़ हैं
मेरे सारे शिकवे झूठ सही
फिर से मनाऊँ..जी भर के
तुँ नैन भिगोकर रूठ सही
तेरे संग सारे तीज त्योहार
तुम पर सब कुछ दूँ वार
तुम बन गये हो ज़िंदगी..बन गये हो ज़िंदगी

“गुरू”ग़ुरूर क्या करे
बात जब तेरे साथ हो
क्या दिन,सदी,वार गिनू
हाथ में जब तेरा हाथ हो
तुम लाख हो,मैं खाख हूँ
तुम मौसम हो,मैं बरसात हूँ
मैं तेरी ज़िंदगी..तुम मेरी ज़िंदगी...

Saturday 13 January 2018

जीते जी मर जाऊँ कैसे

ख़ुद का बोझ उठाऊँ कैसे
जीते जी मर जाऊँ कैसे

तन से तो हम दूर हुए सखी
मन से तुम्हें भगाऊँ कैसे
जीते जी मर जाऊँ कैसे

यूँ तो सब कुछ बहुत अच्छा है
पर ख़ुद को ये समझाऊँ कैसे
जीते जी मर जाऊँ कैसे



हर तरफ़ तुम ही तुम दिखती हो
नज़रें तुमसे चुराऊँ कैसे

बंद नैनो में भी तुम बंद हो
इसका समाधान लाऊँ कहाँ से
जीते जी मर जाऊँ कैसे

‘गुरू’रोग का दर्द तुम्हीं हो,मर्ज़ तुम्हीं हो
ये दुनिया को बतलाऊँ कैसे
जीते जी मर जाऊँ कैसे