Monday 30 March 2015

कितने यार बदलोगी

कितने यार बदलोगी,कितनी बार बदलोगी
कब सोचा था कि तुम रंग हज़ार बदलोगी

ये मन में तो नहीं आया था कि ऐसा भी करोगी
कपड़ो की तरह तुम अपना प्यार बदलोगी

तेरे तो ज़र्रे जर्रे में और पल पल में बस मैं ही मैं था
किसे मालूम था तुम समय के साथ अपना सार बदलोगी

जिस दिल में तेरी रुस्वाइयां थी हमने दिल बदल डाला
भनक तक नहीं थी मुझको तुम दिलदार बदलोगी

कभी"गुरु"को ही अपनी ज़िन्दगी का नाम दिया था
कहाँ मालूम था तुम ज़िंदगी में इतने किरदार बदलोगी
कब सोचा था की तुम रंग हज़ार बदलोगी.......:(

Sunday 29 March 2015

गिले शिकवे gile shikwe poem by "guroo"



सारे ही गिले-शिकवे मेरी झोली में आ बैठे
जिसको पा नहीं सकते हम उसको ही चाह बैठे
मालूम था हमे अंजाम दिल्लगी का पहले से ही
न जाने क्या दिल में आया कि फिर भी दिल लगा बैठे

हम किसी और की जागीर को अपना समझ बैठे
अपने हिस्से की खुशियों भी उनपर लूटा बैठे
यहाँ खुद की खुशी और ग़म का ठीकाना नहीं था
उसे सारी उम्र हँसाने का ठेका उठा बैठे

मोहब्बत छोड़कर हम तो इबादत करने लगे थे
उसके एक आंसू से बहुत डरने लगे थे
मुझको बदलने की खुदा तक में न हिम्मत थी
पर उसके एक बार कहने पर हम खुदको बदलने लगे थे

सारे ही गीले शिकवे खुदा क्यों मुझको देता है
किसी और का होकर भी वो मेरे दिल में रहता है
मुझे धोखे में रखकर लाख झुठ बोले चाहे
इतना काफी है दिल से ना चाहे पर जुबान से अपना कहता है


                                               “गुरू”

Saturday 28 March 2015

दिल भर गया

उसने जी भर के चाहा था मुझे
फिर हुआ यूँ कि उसका दिल भर गया

बड़ा अरसा लगा था उसके दिल में चढ़ते चढ़ते
अफओस हुआ जानकर के दिल से पल में उतर गया

मेरे जज्बात को चन्द लम्हों में बेगाना कर दिया उसने
और उसका मुस्कुराना तक मेरे दिल में घर कर गया

ये तेरा दिल था या कोई खरीदा हुआ झूठा गवाह
अकेले में अपनाया,महफील में साफ़ मुकर गया

मेरे दुश्मन ना कर सके जो काम कई सालो से
आज वो काम तेरा एक झूठा जवाब कर गया

मैं तो अपनी आई में खुदा से भी ना मरने वाला था
पर तुझसे मोहब्बत करके,अपने हाथो ही मर गया

दीन,ईमान,दुनिया,खुदा और मौत तक से बेख़ौफ़ था
आज तेरी याद आई तो "गुरु"देखकर आईने को डर गया।।।।
अफ़सोस हुआ जानकर....कि दिल से उतर गया......।।।।

अपने उसूल

अपने उसूल यूँ हमे तोड़ने पड़े
खता उसकी थी,हाथ हमे जोड़ने पड़े

दिल में.कड़वाहट नहीं रखी तेरे लिए कभी..ईमान से
वो पल ही ऐसा था की कड़वे लफ्ज़ बोलने पड़े

मैं मज़बूर था कि भरोसा कायम ना रख पाया
सरे बाजार मुझे भी कुछ सच बोलने पड़े

यूं तो तुझसे मेरे अपनेपन का कोई दाम नहीं
पर फिर भी तुझसे कहने से पहले लफ्ज़ तोलने पड़े

तुमने तन्हाई में इस कदर बेआबरू किआ था अ-ग़ालिब
बदले में कुछ राज़ हमे भी सबके सामने खोलने पड़े

"गुरु"रम की बोतल से कम नहीं गर ग़म छिपाने पर आये तो
हमे भी पानी में नमक की तरह दुःख घोलने पड़े

खता उसकी थी,हाथ हमे जोड़ने पड़े

मौत से कैसा डर

मौत से कैसा डर मिनटो का खेल है.....
आफत तो ज़िन्दगी है बरसो चला करती है...!

यहाँ सारे ग़म धुंआ हो सकते है पल भर में
मगर इश्क़ की आग ताउम्र जला करती है।।

जिस दिल में पहले ही जगह ना हो किसी की
माशूक भी आकर उसी दिल में जगह करती है।।

नफरत को देखू उसकी तो पल में रुस्वा करदू उसे
पर क्या करूँ, मुझसे मोहब्बत भी बेपनाह करती है।।

लाख चेहरे देखो तब कोई सूरत दिल में उतरती है
खुद को मिटाओ तब जाकर मोहब्बत असर करती है

कई बार तो खुद की हस्ती भी हमे अखरती है
ज़माने से लड़कर ही मोहब्बत परवान चढ़ती है।।

ये मोहब्बत ही है जो ग़ालिब और अख्तर बनाया करती है
और ये मोहब्बत ही है जो बने बनाये"गुरु" को तबाह करती है।।

मुझे नाकाम होने दो

अभी सूरज नहीं डूबा ज़रा सी शाम होने दो;
मैं खुद लौट जाऊँगा मुझे नाकाम होने दो;

मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों;
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो...

अभी दो चार लोगो से अच्छी बनती है मेरी
मैं बदल जाऊंगा पहले दुश्मन दुनिया तमाम होने दो

मेरी मोहब्बत को मैं ही शायद बाजार में नीलाम कर दू
अभी इस दो कोडी की दुनिया में उंचा दाम होने दो

मुझे आराम की जिंदगी जीने में मजा नहीं आता अ खुदा
उसकी यादो में मेरी ज़िंदगी हराम रहने दो

मैं खुद ही लोट आऊंगा
मुझे नाकाम होने दो।।।।।।

वो मान गयी तो मेरी ज़िन्दगी में मकसद क्या बचेगा
"गुरु"को बस उसे मानाने का काम रहने दो

इस बात का ग़म

मुझे इस बात का गम नही के तुम बेवफा निकले........
 अफ़सोस तो इस बात का है के लोग सच्चे निकले...

कुछ लोग थे जो ज़िंदगी में बहुत बुरे थे अ-ग़ालिब
मगर बुरे से बुरे लोग भी तेरे आगे अच्छे निकले......

सामने मैं था,मारने की साज़िश तो जरा अच्छी करते
लड़ना,झगड़ना क्या तुम तो साजिश में भी बच्चे निकले

मैं आँख मूँद कर तेरे हर लफ्ज़ को तेरा वायदा समझता था
लफ्ज़ क्या,,,,तेरे तो वायदे तक कच्चे निकले......

सोचा था "गुरु"जायेगा तेरी ज़िन्दगी में कुछ नाम कमाकर
पर मोहब्बत के नाम पर भी ज़िन्दगी में खाकर धक्के निकले....

 अफ़सोस तो इस बात का है के लोग सच्चे निकले...

ये रिश्ते

ये रिश्ते हैं बहुत हल्के,पर इनका बोझ भारी है
उससे प्यार सच्चा है,यही मेरी लाचारी है
उसकी हर गलती को नजर अंदाज़ किआ मैंने
और वो समझती है कि मुझे भूलने की बिमारी है

बड़ी मुश्किल से इन यादों से आराम आया था
बेहद गहरी बातों को थोडा बहुत भूल पाया था
एक याद ने आंसू बनकर फिर से दिल में जगह लेली
कभी इन आँखों में तेरी खातिर खून का सैलाब आया था

मैं वाकिफ हूँ तेरी हर चाल से अ-सनम अब भी
पर तुझसे प्यार उतना ही बसा दिल में है अब भी
जख्म जितने गहरे देलो,तुम्हे भूलूंगा नहीं पल भर भी
माफ़ किआ था तब भी,माफ़ कर दूंगा अब भी

"गुरु"जितना भी लिखता है,हिस्से तेरे ही आता है
हर बार तेरी गलती से,रिश्ता टूट जाता है
मैं जानता हूँ इस शतरंज में तेरी हर चाल मोहरो की
मगर बस प्यार की खातिर"गुरु"हर बार हार जाता है।।