मैं संवाद चाहता था,तुम विवाद कर बैठी
भूलकर अच्छी यादें,बुरी सब याद कर बैठी
साल भर तुमसे मिलने की याद में मुस्कुराया मैं
सालभर बाद मिलकर भी तुम अपवाद कर बैठी
भूलकर मेरी चाहत,गैरों से मोह लगा बैठी
अपने शहर में कम दिखती थी,अब अहमदाबाद जा बैठी
सोचता था कि मिलोगी तुम,तो मुस्कुराओगी
साल बाद मिलकर भी,तुम नज़रें चुरा बैठी
लड़खड़ाकर कदम मेरे,अपने कदम सम्भाल बैठी
सारे ही गीले-शिकवे मेरी झोली में डाल बैठी
सालों तक रिश्ते में तुमसे शराफत क्या बरती
मेरे बारे में तुम गलत वहम पाल बैठी
मेरी ओर खुद की ज़िंदगी को बेहाल कर बैठी
मोहब्बत प्रेम का बंधन था पर तुम जाल बुन बैठी
गिला तुमसे नही है कि मुझसे बेवफा थी तुम
गिला है कि सच भुलाकर दूसरों का झूठ सुन बैठी
तुम कई बार बदली हो,अभी तक हम नही बदले
तुम्हारे ज़ुल्म नही बदले,हमारे मरहम नही बदले
हमारी ओर तुम्हारी मोहब्बत में फर्क रहा इतना
तुमने ज़ुल्म नही बदले,”गुरू” ने सनम नही बदले
भूलकर अच्छी यादें,बुरी सब याद कर बैठी
साल भर तुमसे मिलने की याद में मुस्कुराया मैं
सालभर बाद मिलकर भी तुम अपवाद कर बैठी
भूलकर मेरी चाहत,गैरों से मोह लगा बैठी
अपने शहर में कम दिखती थी,अब अहमदाबाद जा बैठी
सोचता था कि मिलोगी तुम,तो मुस्कुराओगी
साल बाद मिलकर भी,तुम नज़रें चुरा बैठी
लड़खड़ाकर कदम मेरे,अपने कदम सम्भाल बैठी
सारे ही गीले-शिकवे मेरी झोली में डाल बैठी
सालों तक रिश्ते में तुमसे शराफत क्या बरती
मेरे बारे में तुम गलत वहम पाल बैठी
मेरी ओर खुद की ज़िंदगी को बेहाल कर बैठी
मोहब्बत प्रेम का बंधन था पर तुम जाल बुन बैठी
गिला तुमसे नही है कि मुझसे बेवफा थी तुम
गिला है कि सच भुलाकर दूसरों का झूठ सुन बैठी
तुम कई बार बदली हो,अभी तक हम नही बदले
तुम्हारे ज़ुल्म नही बदले,हमारे मरहम नही बदले
हमारी ओर तुम्हारी मोहब्बत में फर्क रहा इतना
तुमने ज़ुल्म नही बदले,”गुरू” ने सनम नही बदले