दामन ढकते देखा हमने रात भर आसमान को
आपके आगे शर्माते देखा आधे चाँद को
टूटते तारों को देख सब दीदार आपका माँगते
रोज़ छज्जे पर आकर बख्शा करो तारों की जान को
रोज़ गर मुनासिब ना हो तो बेशक कभी-कभी
देखकर या सोचकर तुम्हें,दिल को मिलता थोड़ा इत्मीनान तो
तुमने बस एक नज़र घूरा जो उसको घड़ी दो घड़ी
“गुरु” ने देखा है झुक कर टूटते फूलों के ग़ुमान को