मुलाक़ात कर,बात कर, नज़रे दिखाने से क्या होगा
अपने ख्याल जोड़ कागज़ पर,मेरे ख्याल चुराने से क्या होगाकहा ना लफ्जो में गर कुछ भी,दिल में चाहने से क्या होगा
जिस दिल में कोई पहले बसा हो,उसमे मुझे बसाने से क्या होगा
मुहब्बत दफन सीने में,कभी हमसे ना कहा कुछ भी
सामने आ,इज़हार कर,दिल में छिपाने से क्या होगा
किसी शायर के नगमो को पढ़ना आम सी बात है
समझ लिखा क्या है,लफ्ज़ चुराने से क्या होगा
पता तुमको भी है सबकुछ,खबर मुझको भी है सारी
अब तलक कुछ ना हुआ,आगे बताने से क्या होगा
ख्याल में साथ मेरे तुमने मेरे कई पल गुज़ारे होंगे
नज़रों से मिलकर,हक़ीक़त में दो पल बिताने से क्या होगा
उम्र की आग ही ऐसी है,जलती है जलाती है
अपने साथ इस आग में मुझे जला दोगे तो क्या होगा
जब सपने खुद हक़ीक़त में बदलने को तैयार बैठे हैं
फिर हक़ीक़त को सपनो में बदलने से क्या होगा
समझदार हो तुम भी कोई नादान तो नहीं हो
समझे अब भी नहीं तो आगे समझाने से क्या होगा।।।।
"गुरू"