Monday 14 March 2022

नादान परिंदे बड़े हो गए….(nadan parinde bade ho gaye)… a poem by “guru”

 


नादान परिंदे बड़े हो गए

पैरों पर अपने खड़े हो गए 


साथ दिया जिनका आसमान बनकर हमने

आज पंख उनके,हम ही से बड़े हो गए 


मैंने चाहा कि वो अपनी क़ाबिलियत पहचान ले

दौड़ाया घोड़े सा उनको,और हम लँगड़े हो गए


वो उड़े ऐसे,की दूरियों का अहसास करवाकर ही माने

जो दरारें हम भरने चले थे वही खड्डे हो गए


नई उड़ान का चस्का इतना कि अकेले उड़ने लगे

ऊँचा इतना उड़े कि सारे रिश्ते छोटे हो गए


“गुरु” ऐसा ही रहा,हालत भले बद्द से बद्दतर हो गए 

समझाने लगे तो हम भी दुश्मन हो गए

सब जगह बस तुम ही तुम ..(sab jagah bus tum hi tum) a poem by “guru”

बाहर तुम,भीतर तुम,हर जगह बस तुम ही तुम

मुझमें भी मैं हूँ कहाँ, मुझमे भी बस तुम ही तुम..


धूप तुम,तुम छाँव हो,दर्पण भी तुम,तुम्ही अक्स हो

हो तुम्ही पत्ते,फूल,फल,लहलहाता दरख्त तुम...


शौंक तुम,आदत भी तुम,आदि-अनादि अनन्त तुम

बारिश तुम,पतझड़ भी तुम,जिंदगी के बसन्त तुम



सूरज भी तुम,तुम चाँद हो,तारा भी तुम,गुलाब तुम

ज़ाम तुम,भगवान तुम,तुम सुबह और शाम तुम


तुम भी तुम,"गुरू" भी तुम,सृष्टि सकल कायनात तुम

ज़ज़्बात तुम,हालात तुम ख्वाब तुम मेरे दिल की बात तुम



                                                                                       "गुरू”