नादान परिंदे बड़े हो गए
पैरों पर अपने खड़े हो गए
साथ दिया जिनका आसमान बनकर हमने
आज पंख उनके,हम ही से बड़े हो गए
मैंने चाहा कि वो अपनी क़ाबिलियत पहचान ले
दौड़ाया घोड़े सा उनको,और हम लँगड़े हो गए
वो उड़े ऐसे,की दूरियों का अहसास करवाकर ही माने
जो दरारें हम भरने चले थे वही खड्डे हो गए
नई उड़ान का चस्का इतना कि अकेले उड़ने लगे
ऊँचा इतना उड़े कि सारे रिश्ते छोटे हो गए
“गुरु” ऐसा ही रहा,हालत भले बद्द से बद्दतर हो गए
समझाने लगे तो हम भी दुश्मन हो गए