मुझसे दूर जाकर के कहो, जिंदगी कैसी लगती है
क्या अब भी मुझको याद करके नींद में ही मुस्काती हो
क्या अब भी सपनो में मुझसे मिलने आती हो
क्या मेरी कमी बाँहों में तुमको खलती है
मुझसे दूर जाकर के कहो, जिंदगी कैसी लगती है
क्या सुबह जागकर बिस्तर पर अब भी मुझे ढूंढती हो
क्या तकिये को मेरा माथा समझ प्यार से चूमती हो
साथ खड़े न हो हम-तुम तो दुनिया बेरंगी लगती है
मुझसे दूर जाकर के कहो, जिंदगी कैसी लगती है
क्या अब भी तुमको दर्पण में मेरी छवि दिखाई देती है
अब भी तन्हाई में मेरी आवाज सुनाई देती है
अब नैनो में मैं नहीं,कहो पलकें कैसे सजती है
मुझसे दूर जाकर के कहो, जिंदगी कैसी लगती है
क्या अब भी मेरे बिना तुम्हे सब खाली-खाली लगता है
क्या मेरी याद में अब भी आँखों से होंठो तक आंसू छलकता है
जिस दिल में"गुरू"नही,उसकी धड़कन कैसे धड़कती है
मुझसे दूर जाकर के कहो, जिंदगी कैसी लगती है
चलो सब छोडो बस इतना कहो,याद भी हूँ या भूल गई
यों दिल से मुझे निकाल दिया,ज्यों पैरोँ की धूल गई
मुझे कांटा समझने वाली,अब राहें कैसी लगती हैं।।
मुझसे दूर जाकर के कहो, जिंदगी कैसी लगती है
मुझसे दूर जाने का डर,अब तुमको नही सतायेगा
मुझसा चाहने वाला कोई तुमको कभी न मिल पायेगा
तुमको भी बेताबी रहेगी जैसे मुझको बेचैनी अखरती है
मुझसे दूर जाकर के कहो, जिंदगी कैसी लगती है