Monday 14 December 2015

मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....

तेरी यादें अब भी मेरे दिल को नम रखती हैं....
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....

आँखों ही आँखों में तुझे छू पाता था
मुझे छूने वाला हवा का झोंका तुझे छूकर आता था
अब तू सामने भी आये तो वहम लगती है.........
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....

अब भी मेरी छत से तेरी छत निहारता हूँ
दिल ही दिल में तुझे चीखे मारकर पुकारता हूँ
तेरी पत्थरदिली  के सामने तो तेरी छत की दीवारें भी नरम लगती हैं.....
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....

माथे पर हाथ रखकर धुप में मुझे निहारती थी तुम
तरह तरह के इशारे करके मुझे पुकारती थी तुम
तेरी यादें आज भी मेरे सीने में जख्म रखती हैं..
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....




Thursday 5 November 2015

मुझे क्यू छोड़ा...मुँह क्यू मोड़ा...

मुझे क्यू छोड़ा...मुँह क्यू मोड़ा.......

जब सब माफ़ कर दिया था
हर इरादा साफ़ कर दिया था
तुमने आकर जो फैसला सुनाया
उसी फैसले में इन्साफ कर दिया था....
फिर दोबारा भरोसा क्यू तोडा.......
क्यू छोड़ा.....मुँह क्यू मोड़ा....

तेरी झूठी पीड़ाएं भी जानी थी
तेरी हर गलती तेरी नादानी मानी थी
हर शिकायत हर शिकवा दूर् किआ
तेरी सारी जिद्द पूरी करने की ठानी थी
फिर से दिल को क्यू तोडा....
मुझे क्यू छोड़ा....मुँह क्यू मोड़ा....

मुझको पीड़ा पहुँचाने की एक हद तो रखी होती
शरीर तो जख्मी कर दिया मेरी रूह तो बख्शी होती
गर होता मैं भी जालिम तेरी तरह यूँ बेवफा
तू कबकी रो रोकर जान दे चुकी होती...
मुझे लाश बनाकर क्यू छोड़ा...
मुझे क्यू छोड़ा..मुँह क्यू मोड़ा........

Thursday 8 October 2015

श्राद्ध है मेरा...

मैं तुमसे प्यार करता  हूँ यही अपराध है मेरा
दिल आबाद है तेरा मगर बर्बाद है मेरा
तुमको खोया तो लगता है जैसे खुद को खोया है
जन्मदिन पर भी लगता है जैसे श्राद्ध है मेरा......


इस से तो भला होता की मुझको मार देती तुम
बजाए पीठ के छाती में खंजर उतार देती तुम
मोके लाख दिए थे  हर बार भरोसा तोडा तुमने
मोहब्बत सच्चे दिल से करती फिर दर्द चाहे हजार देती तुम......

यूँ हर बार मेरी जिंदगी उजाड़ कर क्या मिलता है
बिगड़े रिश्ते को और भी बिगाड़ के क्या मिलता है
मेरी हंसी,ख़ुशी,जिंदगी सब तो तेरी गुलाम थी पगली
धोखे से तुम्हे जीतकर और भरोसे में मुझे हारकर क्या मिलता है.....

जरा सी भी गुंजाईश होती अगर तेरे लौट आने की
न तब की थी न अब करता परवाह जमाने की
मैंने खुद आंसू चुनकर तुम्हे खुशियाँ लौटाई थी
बेवफाई दी तुमने हर बार सजा मुझे तुमसे दिल लगाने की.....

"गुरु"अब भी  तुम्हारा है पर गुरु से प्यार नहीं रहा
इतने दिए धोखे की मुझपर तेरा अधिकार नहीं रहा
तेरे हर रूप को  हर हाल में दिल में सम्भाला मैंने
बस एक 'मोटू'तुमसे सच्चे दिल से सम्भला नहीं रहा....

तुम जहाँ हो,जिसके साथ हो तुम्हे सो बार बधाई हो
तुम्हारे दुःख सभी मेरे,मेरी खुशियां तुम्हारे हिस्से आई हों
मेरी दुआएं है तुमको कभी भी कोई दुःख न हो
मेरी तकदीर में तेरे आंसू सही पर तेरे हिस्से मेरी मुस्कान आई हो....

Tuesday 18 August 2015

प्यार कितना है...

तुमसे प्यार कितना है,मैं ये समझा नही सकता
तुम्हे खोना नही चाहता और पा भी नहीं सकता

तुम्हारे साथ रहकर के मुझे कभी रोना नहीं आया
सिवा तेरे कभी किसी और का होना नहीं आया
कभी मेरी रूह से तेरी परछाई को मिटा नहीं सकता
तुम्हे खोना नही चाहता और पा भी नहीं सकता

मुझे मैं प्यारा लगता हूँ जव तुम साथ होती हो
मर जाऊं अगर तुमसे ख्वाबों में मुलाक़ात होती हो
हमारा प्यार पूरे सागर में भी समाँ नहीं सकता
तुम्हे खोना नही चाहता और पा भी नहीं सकता

तेरे आने से जिंदगी की खुशियो ने नया मोड़ लिया है
मैंने तो नाम तक तेरा मेरे नाम से जोड़ लिया है
इस तरीके से दो मोतियो को कोई पिरो नहीं सकता
तुम्हे खोना नही चाहता और पा भी नहीं सकता

बस मुझे छोड़ कर कभी किसी दूजे की मत होना
हंसी हो साथ में मेरे तो मेरे साथ में रोना
विशवास रखना..हमे एक दूजे से ज्यादा कोई चाह नही सकता
तुम्हे खोना नही चाहता और पा भी नहीं सकता

मेरे बुरे समय में भी मुझपर ऐतबार बनाये रखना
मेरा और तुम्हारा बचपन का प्यार बनाये रखना
तुम भी साथ देना मैं अकेला इस रिश्ते को निभा नहीं सकता
तुम्हे खोना नही चाहता और पा भी नहीं सकता

दुनिया कितनी भी सुंदर हो..मेरा अरमान बस तुम हो
बस आखिरी स्वांस तक "गुरु"तेरे प्यार में गूम हो
अब रोना बन्द कर वरना मैं रातभर सो नहीं सकता
तुम्हे खोना नही चाहता और पा भी नहीं सकता।।।।

6 अक्टूबर.2010

एक बेवफा हसीना...एक गद्दार दोस्त.....एक खून

एक बेवफा हसीना...एक गद्दार दोस्त.....एक खून
छिपकर बातें.....खूब सारा पैसा....फिर दोनों मौन.........

छिपि मोहब्बत...छिपकर सेक्स...आँख में धुल
दो सिम कार्ड..नेट रिचार्ज....छिपाया हुआ फोन......

नीली टी-शर्ट...दुर्गा माँ की मूरत....एक छल्ला
एक हवस..दो रिश्ते....दोषी कौन.....

साढ़े तीन महीने...रिश्ता...मर्डर...रिश्ता....हवस...धोखा
झूठ,,,दिखावा,,,आंसू.....फ्री का पैसा...ढोंग......

स्टेट्स में नाम..चोरी की उदास शायरी...कुछ छिपाई हुई तस्वीरें
प्यार...शादी...मर्डर..हवस..शादी..प्यार..ब्लैकमेलिंग...d*ep-s**ran

गुरु...दोस्त...भरोसा..प्यार...विशवास...माफ़ी...मौका..पैसा..शोंक..फायदा
इल्जाम...नाम....गलती......विश्वासघात...एक किताब..."M i wrong"???

"""सच्ची घटना की कहानी"""

Sunday 16 August 2015

अजीब सी चमक

तेरी आँखों में शायद बस गया है कोई,
इक अजीब सी चमक दिखाई पडती है....

जो अपनों की लाशो पर मोहब्बत बसा रहा हो
उसे किसकी चुडिओ में खनक सुनाई पड़ती है...

हर बार बना लेता है मुझे मारने का होंसला
माशुका ने अकेले में कोई बात बताई लगती है

एक को बर्बाद कर..अब दूसरे की कब्र की तयारी है
श्मशान बनाने की मुहीम चलाई जान पड़ती है...

रिश्तों को ताक पर रखकर बली चढ़ा दिया
तभी झूठी मोहब्बत परवान चढ़ी जान पड़ती है

"गुरु"को भी मौत नसीब हो ऐसी चुभन से बेहतर
अपनों की तलवार पीठ से सीने कुतरती है.......

मुझसे मेरी हंसी

किस जुर्म मे छीन गयी मुझसे मेरी हँसी,
मैने तो किसी का दिल दुखाया भी ना था

अपनों के दिल कभी दुखा नहीं करते अ- ग़ालिब
वो बात और है तुमने उसे अपनाया ही नही था

ये तो चौतरफा मोहब्बत का नाटक चल पड़ा
वो रोते रहे झूठमूठ में..हमने अपना घाव दिखाया ही नही था

अकेलेपन की दुहाई देकर कलेजा चीर के रोया जो नौशाद
उसने अपनों को कभी अपना बनाया ही नहीं था

"गुरु"की मोहब्बत झूठी सही,,मगर दिखावा नहीं है
हमने मोहब्बत को कभी तमाशा बनाया ही नही था

मेरी मोजुदगी में झूठा प्यार महफ़िल छोड़ देता है
भूल जाता है की सच कभी शरमाया ही नहीं था

नाम ना हुआ

सब कुछ किया पर नाम ना हुआ,
‪‎मोहब्बत‬ क्या कर ली बदनाम हो गये...

बदनामी के चक्कर में चर्चे हजार हुए
मोहब्बत किसी की और कोई गुमनाम हो गए

हमे तो किसी की नजर में बड़ी चालाकी से गिरा दिया
खुद मशहूर दिखावे में सरे आम हो गए

तुमने तो दो बार महल बसाकर भी झोंपड़ी नहीं छोड़ी
हमने छत वापस मांगी तो हम भिखारी तुम रेहमान हो गए

मेहंगी हो गई माशूक फिर से अपना दाम खिलाकर
"गुरु"बना सच्चा तो ऊसके सस्ते दाम हो गए...

तकदीर की तस्सली

तकदीर ने यह कहकर बङी तसल्ली दी है मुझे कि,
वो लोग तेरे काबिल ही नहीं थे जिन्हें मैंने दूर किया है..!!

तेरे अपने तो कभी तुझसे बिछड़ना ही नही चाहते थे
ढाकर सितम तूने ही बिछड़ने पर मजबूर किआ है

सच लेकर तेरे आगे पीछे डोलते हुए चाकर भी बने
दिखावे की मोहब्बत ने तुझे मगरूर किया है...

उन्हें अपनाना था तो किसी और से रिश्ता बनाया ही क्यू
एक तो चल बसा बेकसूर...दूसरे ने भी क्या कसूर किया है...

जो रिश्ते ना निभा पाया वो मोहब्बत क्या खाक निभाएगा
रिश्तो पर दाग लगाकर"गुरु"को चूर-चूर किया है......

Tuesday 2 June 2015

यादो में रो रहा हूँ.....

आज फिर तेरी याद में रो रहा हूँ
तकिये को सीने से लगाकर सो रहा हूँ........

तू ख्वाबो में आये और ताउम्र सोऊँ मैं
रौशनी खोकर अँधेरे में खो रहा हूँ मैँ........

सम्मोहन में अगर सारी उम्र बीत जाऊं
तेरी याद में खुद को मोह रहा हूँ.....

मेरे जेहन में हैं तेरी नित्य गहरी होती परछाइयाँ
मैं मेरे जेहन को आंसुओ से धो रहा हूँ.......।...

Monday 30 March 2015

कितने यार बदलोगी

कितने यार बदलोगी,कितनी बार बदलोगी
कब सोचा था कि तुम रंग हज़ार बदलोगी

ये मन में तो नहीं आया था कि ऐसा भी करोगी
कपड़ो की तरह तुम अपना प्यार बदलोगी

तेरे तो ज़र्रे जर्रे में और पल पल में बस मैं ही मैं था
किसे मालूम था तुम समय के साथ अपना सार बदलोगी

जिस दिल में तेरी रुस्वाइयां थी हमने दिल बदल डाला
भनक तक नहीं थी मुझको तुम दिलदार बदलोगी

कभी"गुरु"को ही अपनी ज़िन्दगी का नाम दिया था
कहाँ मालूम था तुम ज़िंदगी में इतने किरदार बदलोगी
कब सोचा था की तुम रंग हज़ार बदलोगी.......:(

Sunday 29 March 2015

गिले शिकवे gile shikwe poem by "guroo"



सारे ही गिले-शिकवे मेरी झोली में आ बैठे
जिसको पा नहीं सकते हम उसको ही चाह बैठे
मालूम था हमे अंजाम दिल्लगी का पहले से ही
न जाने क्या दिल में आया कि फिर भी दिल लगा बैठे

हम किसी और की जागीर को अपना समझ बैठे
अपने हिस्से की खुशियों भी उनपर लूटा बैठे
यहाँ खुद की खुशी और ग़म का ठीकाना नहीं था
उसे सारी उम्र हँसाने का ठेका उठा बैठे

मोहब्बत छोड़कर हम तो इबादत करने लगे थे
उसके एक आंसू से बहुत डरने लगे थे
मुझको बदलने की खुदा तक में न हिम्मत थी
पर उसके एक बार कहने पर हम खुदको बदलने लगे थे

सारे ही गीले शिकवे खुदा क्यों मुझको देता है
किसी और का होकर भी वो मेरे दिल में रहता है
मुझे धोखे में रखकर लाख झुठ बोले चाहे
इतना काफी है दिल से ना चाहे पर जुबान से अपना कहता है


                                               “गुरू”

Saturday 28 March 2015

दिल भर गया

उसने जी भर के चाहा था मुझे
फिर हुआ यूँ कि उसका दिल भर गया

बड़ा अरसा लगा था उसके दिल में चढ़ते चढ़ते
अफओस हुआ जानकर के दिल से पल में उतर गया

मेरे जज्बात को चन्द लम्हों में बेगाना कर दिया उसने
और उसका मुस्कुराना तक मेरे दिल में घर कर गया

ये तेरा दिल था या कोई खरीदा हुआ झूठा गवाह
अकेले में अपनाया,महफील में साफ़ मुकर गया

मेरे दुश्मन ना कर सके जो काम कई सालो से
आज वो काम तेरा एक झूठा जवाब कर गया

मैं तो अपनी आई में खुदा से भी ना मरने वाला था
पर तुझसे मोहब्बत करके,अपने हाथो ही मर गया

दीन,ईमान,दुनिया,खुदा और मौत तक से बेख़ौफ़ था
आज तेरी याद आई तो "गुरु"देखकर आईने को डर गया।।।।
अफ़सोस हुआ जानकर....कि दिल से उतर गया......।।।।

अपने उसूल

अपने उसूल यूँ हमे तोड़ने पड़े
खता उसकी थी,हाथ हमे जोड़ने पड़े

दिल में.कड़वाहट नहीं रखी तेरे लिए कभी..ईमान से
वो पल ही ऐसा था की कड़वे लफ्ज़ बोलने पड़े

मैं मज़बूर था कि भरोसा कायम ना रख पाया
सरे बाजार मुझे भी कुछ सच बोलने पड़े

यूं तो तुझसे मेरे अपनेपन का कोई दाम नहीं
पर फिर भी तुझसे कहने से पहले लफ्ज़ तोलने पड़े

तुमने तन्हाई में इस कदर बेआबरू किआ था अ-ग़ालिब
बदले में कुछ राज़ हमे भी सबके सामने खोलने पड़े

"गुरु"रम की बोतल से कम नहीं गर ग़म छिपाने पर आये तो
हमे भी पानी में नमक की तरह दुःख घोलने पड़े

खता उसकी थी,हाथ हमे जोड़ने पड़े

मौत से कैसा डर

मौत से कैसा डर मिनटो का खेल है.....
आफत तो ज़िन्दगी है बरसो चला करती है...!

यहाँ सारे ग़म धुंआ हो सकते है पल भर में
मगर इश्क़ की आग ताउम्र जला करती है।।

जिस दिल में पहले ही जगह ना हो किसी की
माशूक भी आकर उसी दिल में जगह करती है।।

नफरत को देखू उसकी तो पल में रुस्वा करदू उसे
पर क्या करूँ, मुझसे मोहब्बत भी बेपनाह करती है।।

लाख चेहरे देखो तब कोई सूरत दिल में उतरती है
खुद को मिटाओ तब जाकर मोहब्बत असर करती है

कई बार तो खुद की हस्ती भी हमे अखरती है
ज़माने से लड़कर ही मोहब्बत परवान चढ़ती है।।

ये मोहब्बत ही है जो ग़ालिब और अख्तर बनाया करती है
और ये मोहब्बत ही है जो बने बनाये"गुरु" को तबाह करती है।।

मुझे नाकाम होने दो

अभी सूरज नहीं डूबा ज़रा सी शाम होने दो;
मैं खुद लौट जाऊँगा मुझे नाकाम होने दो;

मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों;
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो...

अभी दो चार लोगो से अच्छी बनती है मेरी
मैं बदल जाऊंगा पहले दुश्मन दुनिया तमाम होने दो

मेरी मोहब्बत को मैं ही शायद बाजार में नीलाम कर दू
अभी इस दो कोडी की दुनिया में उंचा दाम होने दो

मुझे आराम की जिंदगी जीने में मजा नहीं आता अ खुदा
उसकी यादो में मेरी ज़िंदगी हराम रहने दो

मैं खुद ही लोट आऊंगा
मुझे नाकाम होने दो।।।।।।

वो मान गयी तो मेरी ज़िन्दगी में मकसद क्या बचेगा
"गुरु"को बस उसे मानाने का काम रहने दो

इस बात का ग़म

मुझे इस बात का गम नही के तुम बेवफा निकले........
 अफ़सोस तो इस बात का है के लोग सच्चे निकले...

कुछ लोग थे जो ज़िंदगी में बहुत बुरे थे अ-ग़ालिब
मगर बुरे से बुरे लोग भी तेरे आगे अच्छे निकले......

सामने मैं था,मारने की साज़िश तो जरा अच्छी करते
लड़ना,झगड़ना क्या तुम तो साजिश में भी बच्चे निकले

मैं आँख मूँद कर तेरे हर लफ्ज़ को तेरा वायदा समझता था
लफ्ज़ क्या,,,,तेरे तो वायदे तक कच्चे निकले......

सोचा था "गुरु"जायेगा तेरी ज़िन्दगी में कुछ नाम कमाकर
पर मोहब्बत के नाम पर भी ज़िन्दगी में खाकर धक्के निकले....

 अफ़सोस तो इस बात का है के लोग सच्चे निकले...

ये रिश्ते

ये रिश्ते हैं बहुत हल्के,पर इनका बोझ भारी है
उससे प्यार सच्चा है,यही मेरी लाचारी है
उसकी हर गलती को नजर अंदाज़ किआ मैंने
और वो समझती है कि मुझे भूलने की बिमारी है

बड़ी मुश्किल से इन यादों से आराम आया था
बेहद गहरी बातों को थोडा बहुत भूल पाया था
एक याद ने आंसू बनकर फिर से दिल में जगह लेली
कभी इन आँखों में तेरी खातिर खून का सैलाब आया था

मैं वाकिफ हूँ तेरी हर चाल से अ-सनम अब भी
पर तुझसे प्यार उतना ही बसा दिल में है अब भी
जख्म जितने गहरे देलो,तुम्हे भूलूंगा नहीं पल भर भी
माफ़ किआ था तब भी,माफ़ कर दूंगा अब भी

"गुरु"जितना भी लिखता है,हिस्से तेरे ही आता है
हर बार तेरी गलती से,रिश्ता टूट जाता है
मैं जानता हूँ इस शतरंज में तेरी हर चाल मोहरो की
मगर बस प्यार की खातिर"गुरु"हर बार हार जाता है।।