Thursday, 22 December 2022

तुम…..Tum….a poem by “guroo “


 शुरू-शुरू में मेरे साथ इतनी ज़ज़्बाती थी तुम…

मैं जैसा कहता था,वैसी हो जाती थी तुम…


दूसरों से मेरी बुराई कर रही हो तो पहले ख़ुद से पूछना 

मुझे अच्छे से जानती हो,या यूँ ही मन हल्का कर रही हो तुम…


किसी और की होकर दोबारा मेरी तरफ़ मत आना 

बार-बार किसी और की होकर,अब मेरी नहीं रही तुम…


तुमसे बात करने का दिल तो बहुत करता है मगर…

बातें रोक लेती हैं,जो दूसरों से मेरे बारे में किया करती हो तुम…


मुझे डर है कि तुमसे बात करके फिर से तुम्हारा ना हो जाये”गुरु”

दूसरों का होकर भी तुम्हारा रहूँ, धोखा देकर दूसरों की रहो तुम…..