Monday 14 December 2015

मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....

तेरी यादें अब भी मेरे दिल को नम रखती हैं....
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....

आँखों ही आँखों में तुझे छू पाता था
मुझे छूने वाला हवा का झोंका तुझे छूकर आता था
अब तू सामने भी आये तो वहम लगती है.........
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....

अब भी मेरी छत से तेरी छत निहारता हूँ
दिल ही दिल में तुझे चीखे मारकर पुकारता हूँ
तेरी पत्थरदिली  के सामने तो तेरी छत की दीवारें भी नरम लगती हैं.....
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....

माथे पर हाथ रखकर धुप में मुझे निहारती थी तुम
तरह तरह के इशारे करके मुझे पुकारती थी तुम
तेरी यादें आज भी मेरे सीने में जख्म रखती हैं..
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....