Monday 3 April 2023

चाय….chay…a poem by guru

तेरी याद में पीऊँगा चाय

जब तक तेरी याद ना जाए


डरने कि क्या बात है आदत 

रात जाये फिर से दिन आए


वो साल बाद भी अपना है जब

फिर खोने पर रोना काहे


चाय पी-पी फुकूँगा मैं छाती 

दुःख जितना हो बँटाया जाए


वही करना जो सही लगे तुम्हें

“गुरु”की इच्छा घर बच जाए


तेरी याद में पीऊँगा चाय

जब तक तेरी याद ना जाए


तुम ख़ास…हो…तो….हो ….

तुम ख़ास…हो…तो….हो

हम साथ…हो न हो
तुम पास…हो न हो…
ज़िंदगी कितनी ही कड़वी हो…मगर..
तुम मिठास …हो …तो…हो…

तुम ख़ास…हो…तो….हो

गले लगा कोई और हो
भले ही दिल में चोर हो…
पर उसके जिस्म में भी मुझे 
तेरा अहसास ….हो…तो…हो…

तुम ख़ास…हो…तो….हो


देह दूँ किसी को भी…
स्नेह दूँ…किसी को भी …
आदतों में तुम अव्वल
हवस की प्यास..तुम..हो..तो…हो

तुम ख़ास…हो…तो….हो

माह..साल..जब भी मिलो..
लिपट..लिपट के यूँ कहो…
“गुरु” चलो…अंदर चलें
फिर मुलाक़ात…हो..न..हो

तुम ख़ास…हो…तो….हो