Friday 30 November 2018

Mohabbat.....मोहब्बत...by guru

दिल से तेरी याद भुलाई नही जाती
मोहब्बत तो आती है मुझे,सियासत नही आती

तेरे फैसले में मेरी रज़ामन्दी,मेरी मर्ज़ी से नही
चाहत तो आती है मुझे,बगावत नही आती

मन्नत पूरी ना हुई तो तुम ख़ुदा बदल बैठे
ईबादत तो आती है मुझे,ख़ुदाई नही आती

जुदाई के बाद का आलम कैसे बयाँ करूँ
यादें तो आती हैं,कयामत नही आती

तोहफे में मिली बेवफाई के बाद,आज तक
तूँ बुरी तो लगती है मगर भुलाई नही जाती

ज़ेहन में चलता रहता है यादों का सिलसिला
तन्हा हो जाता हूँ फिर भी तन्हाई नही आती

मुद्दत तक लेटकर शिद्दत से तेरी तस्वीर देखना
आसुँ तो आते हैं"गुरू",राहत नही आती

Thursday 29 November 2018

मैं....main ….by guru

मैं तुम्हे अतिप्रिय था
मुझसे ही तुम्हारा सुख-दुख था
मैं ही समय,मैं ही कलेंडर
मैं ही तुम्हारा सब कुछ था
प्रेम को तुमने युद्ध सा जाना
तुम जीती मैं गया हार
तुम्हारा कुछ सालों का प्यार... प्रिय...कुछ सालों का प्यार

कुछ साल तो सब कुछ था
कुछ साल बाद बचा कुछ भी नही
तब तक मुझसा कोई भी नही था
अब मुझसा दिखता तुम्हे मैं भी नही
दिमाग से बड़ा कोई विश्वासघाती नही
न दीवाने दिल जैसा कोई लाचार...प्रिय
तुम्हारा कुछ सालों के प्यार प्रिय...कुछ सालों का प्यार

दूजो के लिए जीवन सारा
मेरे लिए एक मुस्कान भी नही
मैं वही रहा,तुम बदल गई
भले मुझे तुम जीवन का भूला-बिसरा किस्सा रखो
पर तुम्हारे जीवन मे जितना मेरा है,उतना तो हिस्सा रखो
इसपर ना करो तकरार प्रिय
तुम्हारा कुछ सालों का प्यार प्रिय.. कुछ सालों का प्यार

बेशक तुम कल में बदल जाना,लेकिन मैं आज में अटल रहूँगा
मैं कल तुम्हारा था,आज तुम्हारा हूँ,तुम्हारा ही कल रहूँगा
ये "गुरू"का वचन नही,सिद्धांत है
तुम्हारा प्रेम मेरी शुरुआत,वही अंत है
मेरे प्रेम में सब कुछ तेरा,बिन प्रेम मुझपे तुम्हारा तिनका भर नही अधिकार प्रिय....
कुछ सालों का प्यार तुम्हारा...कुछ सालों का प्यार प्रिय...कुछ सालों का प्यार

Wednesday 28 November 2018

मैं संवाद चाहता था…(main sanwad chahta tha) by guru

मैं संवाद चाहता था,तुम विवाद कर बैठी
भूलकर अच्छी यादें,बुरी सब याद कर बैठी
साल भर तुमसे मिलने की याद में मुस्कुराया मैं
सालभर बाद मिलकर भी तुम अपवाद कर बैठी

भूलकर मेरी चाहत,गैरों से मोह लगा बैठी
अपने शहर में कम दिखती थी,अब अहमदाबाद जा बैठी
सोचता था कि मिलोगी तुम,तो मुस्कुराओगी
साल बाद मिलकर भी,तुम नज़रें चुरा बैठी

लड़खड़ाकर कदम मेरे,अपने कदम सम्भाल बैठी
सारे ही गीले-शिकवे मेरी झोली में डाल बैठी
सालों तक रिश्ते में तुमसे शराफत क्या बरती
मेरे बारे में तुम गलत वहम पाल बैठी

मेरी ओर खुद की ज़िंदगी को बेहाल कर बैठी
मोहब्बत प्रेम का बंधन था पर तुम जाल बुन बैठी
गिला तुमसे नही है कि मुझसे बेवफा थी तुम
गिला है कि सच भुलाकर दूसरों का झूठ सुन बैठी


तुम कई बार बदली हो,अभी तक हम नही बदले
तुम्हारे ज़ुल्म नही बदले,हमारे मरहम नही बदले
हमारी ओर तुम्हारी मोहब्बत में फर्क रहा इतना
तुमने ज़ुल्म नही बदले,”गुरू” ने सनम नही बदले