Wednesday 31 May 2023

इस शहर में घर क्यों रखूँ,,,,is shehar me ghar kyun rakhun

 ब्याह करके जब तुम ही चली गई

अब मैं इस शहर में घर क्युँ रखूँ


तेरे दिल में मेरी याद,मेरे बाद भी नहीं

मैं मेरे बच्चों के नाम,तेरे नाम पर क्युँ रखूँ


तुमने सजा ली है अलमारी में इत्र की शीशियाँ

मैं अपनी अलमारी में ज़हर क्युँ रखूँ


दूसरों के आग़ोश में गर्माहट लेने लगी हो

तेरे लिये मेरे हाथों में दोपहर क्युँ रखूँ


तुम किसी के लिए कुछ भी रहो,मेरे लिये ख़ुदा रहोगे

दिल नहीं मानता,किसी और के सज़दे में सर क्यूँ रखूँ

पहला प्यार,,,,pehla pyar

 पहला प्रेम तुमसे किया,वही बन गया मोह प्रिय

कैसे नयनन से दूर करूँ,तुम्हीं कुछ कहो प्रिय


वियोग दुख मुझको ही क्यूँ,स्वीकृति तो दोनों की थी

मैं ही तन्हा क्यूँ झेलूँ,तुम भी तौला-मासा सहो प्रिय


संभावित तुम न भाग्य लिखी,जितनी मिली प्रयाप्त सखी

आजीवन मैं तेरे हृदय बसूँ,मुझमें बसकर तुम रहो प्रिय


कभी पूरी न मन की चाह हुई,भला कब कान्हा की राधा हुई

उतना प्रेम तो संभव ना है,उस से कम भी ना हो प्रिय


मेरे नाम में नाम तुम्हारा,मुझे ख़ुद से ज़्यादा तुमसे स्नेह प्रिय

देह अर्पण किसी को रखो,हृदय समर्पित”गुरु” को रखो प्रिय

प्रेम मे शर्त,,,,,prem me shart

 प्रिय


मुझे तुमसे सच्ची मोहब्बत है मगर 

तुम्हें मुझसे दिन भर बात करनी होगी 

ताकि मैं दिल से किसी और को 

भुला सकूँ….व…

तुम्हें बसा सकूँ…


तुम्हें आना होगा मेरी ज़रूरतों में काम

ताकि…कोई और ना आये 

वरना मैं मोह जाऊँगी 

किसी तीसरे की हो जाऊँगी…


मेरे सारे चेहरे खूबसूरत दिखाने होंगे

तारीफ़ों के झूठे पुल बनाने होंगे

मैं ग़ुस्सा करूँगी,बदसलूकी करूँगी

और तुम्हें नख़रे उठाने होंगे…


मुझसे मोहब्बत करनी होगी

इज़्ज़त करनी होगी

ये जानकर भी 

कि मेरे महबूब रहे हैं कई

पर मेरी बात मानो तो सही

अब वाला जो दिल में बसा है 

वही है आख़िरी…..


ये सब कर सकते हो 

तो मेरे दिल में रह सकते हो…

अपना कह सकते हो….


सुनो मेरी प्रिय सखी


मैंने तुमसे प्यार किया है

चौकीदारी नहीं

यूँ दिल से कितनों को निकालूँगा

अपनी तस्वीर तुम्हारे दिल में 

कितनी बार डालूँगा…


अगर सच में मोहब्बत है 

तो…….

ये तुमको ही करके दिखाना होगा

दिल में मुझे बसाना होगा…

वरना दुनिया भरी पड़ी है

दिल को भरती रहो

शौंक पूरे करती रहो…


मैं पुराना आशिक़ हूँ….

तुम्हारे सिवा

दिल में भला किसे बनाऊँगा

मन मारकर चला जाऊँगा

आज हूँ….साथ तो हूँ….

कल नज़र नहीं आऊँगा….


लेकिन….अपने साथ ले जाऊँगा

तुम्हें मुझे चाहने का अधिकार

वो इंतज़ार

जो छत पर मैंने तुम्हारे लिए 

कई साल किया है 

वो एक जन्म

जो तुम्हारे साथ जिया है


वो नज़र जो तुम्हें देखकर 

ठहर जाता करती है

वो मीठी आवाज़ 

जो तुम्हारे साथ 

दिन-रात बात किया करती है 


वो हक़

जिस से तुम कभी भी

मुझे फ़ोन कर सकती हो 

ग़ुस्सा कर सकती हो…

लड सकती हो….

झगड़ सकती हो….


बिना पलक झपकायें

मेरी आँखों में झांकने का 

हक़…..मुझसे मुझे माँगने का


अब मैं सही रास्ता नहीं दिखाऊँगा 

बातें नहीं समझाऊँगा

ज़रूरत हो या आपातकाल

मैं काम नहीं आऊँगा


मुँह मोड़ लूँगा

सारे बंधन तोड़ लूँगा

मेरा प्रेम अमर रखूँगा

तुम्हें अधर में छोड़ दूँगा


रहा फ़ैसला तुमपर

रहो,रचो,बसो

किसी के दिल में 

किसी के घर में 

किसी के बिस्तर पर 


और समझाना दुनिया को 

कि तुमने कुछ नहीं किया 

अगर कोई माने….तो ……


अगर आओ मेरे पास 

मेरी बनकर पूरी आना 

अधूरी 

मुझे स्वीकार नहीं …..

मुझे तुमसे मोह और मोहब्बत 

दोनों बेपनाह

है 

मगर 

इस मोहब्बत में तुम्हारी

शर्तें स्वीकार नहीं….

“गुरु” का प्यार…..प्यार है

कोई बातों का बाज़ार नहीं

इतवार है,,,उसका फ़ोन नहीं आया,,,, Itwar hai,uska fon nahi aaya

 ना नींद हुई पूरी मेरी, ना पेट भर खाया

इतवार है ,,,,उसका फ़ोन नही आया 


कुछ ज़रूरी काम आया होगा 

या देर से जग पाई होगी

नहीं तो कोई रिश्तेदार आ गया होगा 

या तबियत बिगड़ आई  होगी 

ना आँख मेरी चमकी,ना चेहरा खिलखिलाया 

इतवार है ,,,,उसका फ़ोन नही आया


शायद कहीं बाहर गई होगी

परिवार के साथ रही होगी 

इसी के रहते फ़ोन नहीं कर पाई होगी 

मुमकिन नहीं कि उसे याद ना आई होगी 

ना फ़ोन बजा मेरा,ना दरवाज़ा खटखटाया

इतवार है ,,,,उसका फ़ोन नही आया 


शायद काम में खो गई होगी

थककर सो गई होगी 

लेकर करवट जब उसने बाहें जोड़ी हैं 

नींद आ गई इसमें उसकी गलती थोड़ी है 

चाह तो रही होगी,बस टाइम नहीं लग पाया 

इतवार है,,,उसका फ़ोन नही आया 


हो सकता है फ़ोन ख़राब हो गया हो 

या सुबह से घर बिजली ना आई हो 

शायद नेटवर्क की दिक़्क़त होगी 

या फ़ोन चार्ज ना कर पाई हो 


शायद आज उसका फ़ोन चार्ज नहीं हो पाया 

पहला इतवार है जब उसका फ़ोन नही आया 


“गुरु” ख़ुद को ये दिलासे कब तक देते रहोगे 

ख़ुद ही ख़ुद को कब तक ऐसे समझाते रहोगे 

आदत के ये बहाने सोमवार तक चलेंगे 

उम्मीद है कि कल उनकी आवाज़ हम सुनेंगे


मेरे पगले दिल को मै ख़ुद ना समझा पाया 

पहला इतवार है जब उसका फ़ोन नही आया

आँखों में छिपाकर तलवार रखता हूँ,,,,ankho me chhipa kar talwar rakhta hu

 अपने लफ़्ज़ों पर पूरा करार रखता हूँ

आँखों में छिपाकर तलवार रखता हूँ


मुझसे मिलने से पहले अपनी समझ निखार लेना

मैं किसी के सामने बात ,बस एक बार रखता हूँ


ज़िंदगी में लड़ने का थोड़ा तो मज़ा आये “गुरु”

दोस्त तो दोस्त मैं दुश्मन भी समझदार रखता हूँ


इस एक नज़र ने कई हसीनाओं के कलेजे लुटे हैं

होंठ नशीले ,निगाहें  तेज़धार रखता हूँ