इश्क़ में एक गलती भारी,और हम चार कर बैठे
एक बारी ही न संभले,हम कई बार कर बैठे…
हमने पहली गलती की,तुम्हें अपना बनाने की
प्यार जताने की,,सारे राज़ बताने की…
मगर तुम तो बस….तुम निकले
किसी मौक़े कसर छोड़ी नहीं,हमें नौच खाने की
ख़ता सारी भूलकर तुम पर एतबार कर बैठे
इश्क़ में एक गलती भारी,और हम चार कर बैठे
दूसरी गलती ये कर दी, कि एक बेवफ़ा को माफ़ कर दिया
सब गुनाह भूले,पिछला सब साफ़ कर दिया
मगर तुम तो…..तुम्हीं निकले
वफ़ा को बेवफ़ा करके फिर से सब राख कर दिया
सौ बार वजह पूछी,पर तुम इंकार कर बैठे
इश्क़ में एक गलती भारी,और हम चार कर बैठे
गलती तीसरी ये थी,तेरे आंसू को सच जाना
तुम्हें परखा नहीं फिर से,तेरी बातों को सच माना
मगर तुम तो….फिर से तुम निकले…
सो हमने ही सही समझा…तेरे रस्ते से हट जाना
ख़ुद अपनी ही नज़रों में गुनहेगार बन बैठे…
इश्क़ में एक गलती भारी,और हम चार कर बैठे
ख़ता ये आख़री समझी,”गुरू” तुमको भुला नहीं पाया
तुमने अपनाया नहीं दिल से,और मैं ठुकरा नहीं पाया
सच में……तुम तो…..बस तुम ही हो….
तुम जैसी ढूँढ नहीं पाया,,किसी को अपना नहीं पाया
ज़िंदगी भूलकर सारी…मोहब्बत फिर एक बार कर बैठे
इश्क़ में एक गलती भारी,और हम चार कर बैठे….