Tuesday 8 March 2022

माया ......MAYA a poem by "guru"

                                                          माया


ऊपर से निचे तक सारे आबंध खोलकर

भीतर तक देख ली माया,अच्छे से टटोलकर
सन्तों के लाख वचन भी समझा नहीं पाये
कदमो को थाम बैठे तुम,माया के एक बोल पर

रंग में भले चमक,मगर बंदर सी सुंदर है
माया महाठगनी है तो लगती बेहद खूबसूरत है
ये एक हाथ,एक दिल में,नही बस पाई कभी
पागल ना बन इसके लिए ना झोल-झाल कर

ये माया नहीं तेरी,ना होगी कभी उसकी
सब के सब लड़ के मर गए,राक्षसो की हुई ना ऋषि मुनि की
माया में दम है कितना,आकर के मुझसे पूछो
देखी है हमने ताकते,गलियो में इसका रस्ता रोक कर

नागीन सा फन उठाती है ये बात बात पर
लोगो को जगाती है ये रात रात भर
वाकिफ है"गुरु"भी इसके शब्दों  से भली भांति
देखा है इसको हमने तराजू में तोलकर

बच्चों से क्या उलझना,हमसे मोल भाव् कर
ताक में बैठे है  हम छाती के बटनों को खोलकर
कब तक यूँ ही लोगो को पागल बनाओगी
आकर "गुरु"से भी नजरें दो-चार कर....

                                                                "गुरु"