Thursday 8 October 2015

श्राद्ध है मेरा...

मैं तुमसे प्यार करता  हूँ यही अपराध है मेरा
दिल आबाद है तेरा मगर बर्बाद है मेरा
तुमको खोया तो लगता है जैसे खुद को खोया है
जन्मदिन पर भी लगता है जैसे श्राद्ध है मेरा......


इस से तो भला होता की मुझको मार देती तुम
बजाए पीठ के छाती में खंजर उतार देती तुम
मोके लाख दिए थे  हर बार भरोसा तोडा तुमने
मोहब्बत सच्चे दिल से करती फिर दर्द चाहे हजार देती तुम......

यूँ हर बार मेरी जिंदगी उजाड़ कर क्या मिलता है
बिगड़े रिश्ते को और भी बिगाड़ के क्या मिलता है
मेरी हंसी,ख़ुशी,जिंदगी सब तो तेरी गुलाम थी पगली
धोखे से तुम्हे जीतकर और भरोसे में मुझे हारकर क्या मिलता है.....

जरा सी भी गुंजाईश होती अगर तेरे लौट आने की
न तब की थी न अब करता परवाह जमाने की
मैंने खुद आंसू चुनकर तुम्हे खुशियाँ लौटाई थी
बेवफाई दी तुमने हर बार सजा मुझे तुमसे दिल लगाने की.....

"गुरु"अब भी  तुम्हारा है पर गुरु से प्यार नहीं रहा
इतने दिए धोखे की मुझपर तेरा अधिकार नहीं रहा
तेरे हर रूप को  हर हाल में दिल में सम्भाला मैंने
बस एक 'मोटू'तुमसे सच्चे दिल से सम्भला नहीं रहा....

तुम जहाँ हो,जिसके साथ हो तुम्हे सो बार बधाई हो
तुम्हारे दुःख सभी मेरे,मेरी खुशियां तुम्हारे हिस्से आई हों
मेरी दुआएं है तुमको कभी भी कोई दुःख न हो
मेरी तकदीर में तेरे आंसू सही पर तेरे हिस्से मेरी मुस्कान आई हो....