Sunday 16 August 2015

अजीब सी चमक

तेरी आँखों में शायद बस गया है कोई,
इक अजीब सी चमक दिखाई पडती है....

जो अपनों की लाशो पर मोहब्बत बसा रहा हो
उसे किसकी चुडिओ में खनक सुनाई पड़ती है...

हर बार बना लेता है मुझे मारने का होंसला
माशुका ने अकेले में कोई बात बताई लगती है

एक को बर्बाद कर..अब दूसरे की कब्र की तयारी है
श्मशान बनाने की मुहीम चलाई जान पड़ती है...

रिश्तों को ताक पर रखकर बली चढ़ा दिया
तभी झूठी मोहब्बत परवान चढ़ी जान पड़ती है

"गुरु"को भी मौत नसीब हो ऐसी चुभन से बेहतर
अपनों की तलवार पीठ से सीने कुतरती है.......

मुझसे मेरी हंसी

किस जुर्म मे छीन गयी मुझसे मेरी हँसी,
मैने तो किसी का दिल दुखाया भी ना था

अपनों के दिल कभी दुखा नहीं करते अ- ग़ालिब
वो बात और है तुमने उसे अपनाया ही नही था

ये तो चौतरफा मोहब्बत का नाटक चल पड़ा
वो रोते रहे झूठमूठ में..हमने अपना घाव दिखाया ही नही था

अकेलेपन की दुहाई देकर कलेजा चीर के रोया जो नौशाद
उसने अपनों को कभी अपना बनाया ही नहीं था

"गुरु"की मोहब्बत झूठी सही,,मगर दिखावा नहीं है
हमने मोहब्बत को कभी तमाशा बनाया ही नही था

मेरी मोजुदगी में झूठा प्यार महफ़िल छोड़ देता है
भूल जाता है की सच कभी शरमाया ही नहीं था

नाम ना हुआ

सब कुछ किया पर नाम ना हुआ,
‪‎मोहब्बत‬ क्या कर ली बदनाम हो गये...

बदनामी के चक्कर में चर्चे हजार हुए
मोहब्बत किसी की और कोई गुमनाम हो गए

हमे तो किसी की नजर में बड़ी चालाकी से गिरा दिया
खुद मशहूर दिखावे में सरे आम हो गए

तुमने तो दो बार महल बसाकर भी झोंपड़ी नहीं छोड़ी
हमने छत वापस मांगी तो हम भिखारी तुम रेहमान हो गए

मेहंगी हो गई माशूक फिर से अपना दाम खिलाकर
"गुरु"बना सच्चा तो ऊसके सस्ते दाम हो गए...

तकदीर की तस्सली

तकदीर ने यह कहकर बङी तसल्ली दी है मुझे कि,
वो लोग तेरे काबिल ही नहीं थे जिन्हें मैंने दूर किया है..!!

तेरे अपने तो कभी तुझसे बिछड़ना ही नही चाहते थे
ढाकर सितम तूने ही बिछड़ने पर मजबूर किआ है

सच लेकर तेरे आगे पीछे डोलते हुए चाकर भी बने
दिखावे की मोहब्बत ने तुझे मगरूर किया है...

उन्हें अपनाना था तो किसी और से रिश्ता बनाया ही क्यू
एक तो चल बसा बेकसूर...दूसरे ने भी क्या कसूर किया है...

जो रिश्ते ना निभा पाया वो मोहब्बत क्या खाक निभाएगा
रिश्तो पर दाग लगाकर"गुरु"को चूर-चूर किया है......