Sunday, 21 May 2017

तेरे चेहरे की मायूसी

तेरे चेहरे की मायूसी अब भी ज़हन में है
उदासी अब भी मेरे मन में है

मैंने कपड़ों की तरह ज़िस्म नही बदले
तेरी खुशबू अब भी मेरे तन में है

कुछ ऐसा चलाया किस्सा बेवफाई का तुमने
तुम्हारा दिया हुआ धोखा,अब भी चलन में है

वो जूस के साथ आलू के परांठे तेरे
रुखसत होकर भी तूँ मेरे रहन-सहन में है

वो बात न होगी,स्वर्ग की परियों में गुरू
जो बात मेरी परी जैसी सनम में है

तेरे जाने के बाद को जीना,जिंदगी  कहता नही गुरू
या जिंदगी तेरी बाँहों में थी,या फिर कफ़न में है