Friday 22 July 2022

कबुतर बना के रखा है….kabutar bana ke rakha hai….a poem by “Guroo”

         


जादूगरनी सा मायाजाल बिछा के रखा है

मुझ जैसे कईयों को कबुतर बना के रखा है


घिस-घिस के मुराद पूरी करवाती है मालकिन बनकर

जिन्न बनाकर मुझे,अपने पर्स में चिराग़ छिपा के रखा है 


काला जादू चलाया है मेरे अपने ही दोस्तों पर उसने

कमीनों ने मुझे दुश्मन ,उसे हमदर्द बना  के रखा है


वो मेरे उड़ाए कबुतर तक मार देती,पक्का यक़ीन है 

ये तो शुक्र है ख़ुदा तुमने इंटरनेट चला के रखा है


इसे मासूमियत समझो या कहलो कि मैं पागल हूँ

उस से ज़्यादा मालूम है,जितना उसने छिपा के रखा है


निशानियों को उसका कलंक बनाने का हुनर रखता हूँ

मसला ये है कि “गुरु” उस से दिल लगा रखा है….

Friday 8 July 2022

सारी उम्र तुम्हें मेरी कमी रहे..sari umr tumhe meri kmi rahe…a poem bu “Guru”

 होंठो पर मुस्कान ,आँखो में नमी रहे

सारी उम्र तुम्हें मेरी कमी रहे


जुग-जुग जीयो तुम,उम्र लम्बी रहे

ताउम्र ज़िंदगी में मेरी कमी रहे


दो तारीफ़ों में आसमाँ उड़ना है तो उड़ो

बेहतर होगा पैरों तले जमीं रहें


हर साल नए रिश्ते में ना बंधो पगली

मेरी चाहत बनी रहे,तेरी इज्जत बनी रहे


ख़ुदा करे तुम्हारी उम्र बहुत लम्बी रहे

सारी उम्र तुझे मेरी कमी रहे