Thursday 5 November 2015

मुझे क्यू छोड़ा...मुँह क्यू मोड़ा...

मुझे क्यू छोड़ा...मुँह क्यू मोड़ा.......

जब सब माफ़ कर दिया था
हर इरादा साफ़ कर दिया था
तुमने आकर जो फैसला सुनाया
उसी फैसले में इन्साफ कर दिया था....
फिर दोबारा भरोसा क्यू तोडा.......
क्यू छोड़ा.....मुँह क्यू मोड़ा....

तेरी झूठी पीड़ाएं भी जानी थी
तेरी हर गलती तेरी नादानी मानी थी
हर शिकायत हर शिकवा दूर् किआ
तेरी सारी जिद्द पूरी करने की ठानी थी
फिर से दिल को क्यू तोडा....
मुझे क्यू छोड़ा....मुँह क्यू मोड़ा....

मुझको पीड़ा पहुँचाने की एक हद तो रखी होती
शरीर तो जख्मी कर दिया मेरी रूह तो बख्शी होती
गर होता मैं भी जालिम तेरी तरह यूँ बेवफा
तू कबकी रो रोकर जान दे चुकी होती...
मुझे लाश बनाकर क्यू छोड़ा...
मुझे क्यू छोड़ा..मुँह क्यू मोड़ा........