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वो मुझसे दूर ही अच्छे
जो नाराज है मुझसे,वो मुझसे दूर ही अच्छे
उनकी सस्ती दवा से तो मेरे नासूर ही अच्छे
मगर इतनी समझ देना कि दोनों में फ़र्क़ समझें
अगर हीरे की ख्वाइश है तो फिर अहसास को समझो
कांच में तुम भी दिखोगे,इस विशवास को समझो
धुप में बिखर के तो चमकते कांच के टुकड़े भी है
अगर हीरे ही बने हो तो फिर जरा रात को चमको
बिना बोले जमाना सबको नया पाठ पढाता है
पैसा धुन बनाता है,जमाना साथ गाता है
कभी चाहत थी मेरी तो गरीबी मेरे साथ तुम चलती
अब मैं पैसा कमाता हूँ,मुझे हर कोई चाहता है
मैं लेकर होंसले के आँसू, लड़ा हूँ सदा खुदगर्जी से
रुलाया है बेहद मुझको,मेरी चाहत ने बेदर्दी से
मेरी हालत पर ना तुम रहम खाना मेरे मौला
मैं चाहता हूँ वो मेरे पास आये बस अपनी ही मर्जी से
अपनी ही मर्जी से….. अपनी ही मर्जी से.....
"गुरू"
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