मनाया भी…जताया भी…अब तो रो-रो के थक गए
तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए
तुम्हारी नादानियाँ तुमसे अधिक हमने भुगती हैं
आवारगी,बेशर्मी,बेवफ़ा मेरी आँखों को चुभती है
तुम्हारी हँसी नहीं रुकती,हम रो-रो के थक गए
तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए
अंधा समझती हो सही,मगर पागल तो ना समझो
मोहब्बत ना समझो ना सही,हमे आदत तो समझो
ख़ुद को ढूँढने निकले थे,तुमको खो-खो के थक गए
तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए
समझता हूँ ,मेरे स्वालों पर खामोशी तुम्हारे पास रहती है
तुम्हें लगता है”गुरु” के मिज़ाज में सदा मिठास रहती है
अंधेरे में रहें कितना , तुम्हारी ख़ातिर सो-सो के थक गए
तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए