Tuesday 21 March 2023

थक गए….thak gaye….a poem by Guroo

 मनाया भी…जताया भी…अब तो रो-रो के थक गए

तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए


तुम्हारी नादानियाँ तुमसे अधिक हमने भुगती हैं

आवारगी,बेशर्मी,बेवफ़ा मेरी आँखों को चुभती है

तुम्हारी हँसी नहीं रुकती,हम रो-रो के थक गए

तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए


अंधा समझती हो सही,मगर पागल तो ना समझो

मोहब्बत ना समझो ना सही,हमे आदत तो समझो

ख़ुद को ढूँढने निकले थे,तुमको खो-खो के थक गए

तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए


समझता हूँ ,मेरे स्वालों पर खामोशी तुम्हारे पास रहती है 

तुम्हें लगता है”गुरु” के मिज़ाज में सदा मिठास रहती है 

अंधेरे में रहें कितना , तुम्हारी ख़ातिर सो-सो के थक गए

तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए


Sunday 5 March 2023

हंस…hans


 ग़ुरूर तौबा कि तुमपर बगुले लाख मरते हैं

मगर ये समझो वो बगुले कइयों पर आँख रखते हैं

भले “गुरु “तुम्हारी आँख को कई साल खलता था

मगर एक हंस था जो बस…और बस 

तुम्हीं पर मरता था……


मोहब्बत.......MOHABBAT

 



 चेहरे पर मुस्कान ,दिल में बेक़रारी हो रही है

शायद पुरानी मोहब्बत नई नफ़रत पर भारी हो रही है 


“गुरु”