तेरी यादें अब भी मेरे दिल को नम रखती हैं....
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....
आँखों ही आँखों में तुझे छू पाता था
मुझे छूने वाला हवा का झोंका तुझे छूकर आता था
अब तू सामने भी आये तो वहम लगती है.........
अब भी मेरी छत से तेरी छत निहारता हूँ
दिल ही दिल में तुझे चीखे मारकर पुकारता हूँ
तेरी पत्थरदिली के सामने तो तेरी छत की दीवारें भी नरम लगती हैं.....
माथे पर हाथ रखकर धुप में मुझे निहारती थी तुम
तरह तरह के इशारे करके मुझे पुकारती थी तुम
तेरी यादें आज भी मेरे सीने में जख्म रखती हैं..
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....
आँखों ही आँखों में तुझे छू पाता था
मुझे छूने वाला हवा का झोंका तुझे छूकर आता था
अब तू सामने भी आये तो वहम लगती है.........
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....
दिल ही दिल में तुझे चीखे मारकर पुकारता हूँ
तेरी पत्थरदिली के सामने तो तेरी छत की दीवारें भी नरम लगती हैं.....
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....
तरह तरह के इशारे करके मुझे पुकारती थी तुम
तेरी यादें आज भी मेरे सीने में जख्म रखती हैं..
मेरी और तेरी छत के बिच की दुरी भी बहुत कम लगती है....