Tuesday 28 June 2022

जो दिखाई देता है…a poem by “guru kataria”




वो हर बार सफ़ाई देता है

वो…वो नही है..जो दिखाई देता है…


झूठी मोहब्बत में ज़हर है,मुझे मालूम है

मैं आँख बंद करता हूँ,वो पिला ही देता है


दोस्ती से बढ़कर मैंने कुछ नही समझा

मेरे दोस्त को मेरा दुश्मन वो बना ही देता है


मोहब्बत है उस से,ग़लतियाँ भी सर माथे

मैं तो माफ़ी देता हूँ,पर वक़्त तबाही देता है


लाख”गुरु”नक़ली सही,असली झूठे आशिक़ सारे

अब ना पीछे से चिल्लाना,मुझे कम सुनाई देता है…..


                                                    “गुरू”

No comments: