Friday 22 July 2022

कबुतर बना के रखा है….kabutar bana ke rakha hai….a poem by “Guroo”

         


जादूगरनी सा मायाजाल बिछा के रखा है

मुझ जैसे कईयों को कबुतर बना के रखा है


घिस-घिस के मुराद पूरी करवाती है मालकिन बनकर

जिन्न बनाकर मुझे,अपने पर्स में चिराग़ छिपा के रखा है 


काला जादू चलाया है मेरे अपने ही दोस्तों पर उसने

कमीनों ने मुझे दुश्मन ,उसे हमदर्द बना  के रखा है


वो मेरे उड़ाए कबुतर तक मार देती,पक्का यक़ीन है 

ये तो शुक्र है ख़ुदा तुमने इंटरनेट चला के रखा है


इसे मासूमियत समझो या कहलो कि मैं पागल हूँ

उस से ज़्यादा मालूम है,जितना उसने छिपा के रखा है


निशानियों को उसका कलंक बनाने का हुनर रखता हूँ

मसला ये है कि “गुरु” उस से दिल लगा रखा है….

3 comments:

Unknown said...

Bahut achhe

Virender with logics said...

दिल मे लगी आग को बुझाए कैसे.....???
कमबख्त दिल उससे प्यार करता है तो भुलाए कैसे...???
VK Rathi

Virender with logics said...

माना कि मायाजाल में उलझा के रखा हुआ है...;
तो क्या हुआ तीर कई हैं मगर निशाना उसी पर लगा रखा है...
VK Rathi