बाहर तुम,भीतर तुम,हर जगह बस तुम ही तुम
मुझमें भी मैं हूँ कहाँ, मुझमे भी बस तुम ही तुम..
धूप तुम,तुम छाँव हो,दर्पण भी तुम,तुम्ही अक्स हो
हो तुम्ही पत्ते,फूल,फल,लहलहाता दरख्त तुम...
शौंक तुम,आदत भी तुम,आदि-अनादि अनन्त तुम
बारिश तुम,पतझड़ भी तुम,जिंदगी के बसन्त तुम
सूरज भी तुम,तुम चाँद हो,तारा भी तुम,गुलाब तुम
ज़ाम तुम,भगवान तुम,तुम सुबह और शाम तुम
तुम भी तुम,"गुरू" भी तुम,सृष्टि सकल कायनात तुम
ज़ज़्बात तुम,हालात तुम ख्वाब तुम मेरे दिल की बात तुम
"गुरू”
7 comments:
Nice Guruji
Very nice dear Guru
Very nice poem
Deep thinking sir
❤ Touching Poem...
Good morning Everyone one
Jabrdat poem Guru😘👌👍
Good morning Everyone one
Jabrdat poem Guru������
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