जीतकर कमाई है ,झूठी साख नहीं रखता
उस हसीना पर भरोसा ,मैं खाख नहीं रखता
आँखों में आई यादें दिल में उतार लेता मगर
बारूद से भरकर मैं असला,साथ नहीं रखता
चाहत उसकी जब तक साथ थी; तो थी
अब उसकी चाहत साथ नहीं रखता
उसकी याद से इतनी दूरियाँ है मेरी
उसकी छुई हुई चीजों पर भी ; मैं हाथ नहीं रखता
उसके दिल में होने का,मैं अहसास नहीं रखता
उसका होना या ना होना,मायने कुछ ख़ास नहीं रखता
दिल में कुछ,होठों में कुछ रखते हो “गुरु”
बेवफ़ा लोगों के आगे ,मैं अपनी बात नही रखता
तुम बिन नींद ही ना आये,ऐसी रात नहीं रखता
मेरी कद्र ना हो तो मैं ज़ज़्बात नहीं रखता
तेरे जाने के ग़म से टूट सा जाये
“गुरु” ऐसे भी हालात नहीं रखता
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