ब्याह करके जब तुम ही चली गई
अब मैं इस शहर में घर क्युँ रखूँ
तेरे दिल में मेरी याद,मेरे बाद भी नहीं
मैं मेरे बच्चों के नाम,तेरे नाम पर क्युँ रखूँ
तुमने सजा ली है अलमारी में इत्र की शीशियाँ
मैं अपनी अलमारी में ज़हर क्युँ रखूँ
दूसरों के आग़ोश में गर्माहट लेने लगी हो
तेरे लिये मेरे हाथों में दोपहर क्युँ रखूँ
तुम किसी के लिए कुछ भी रहो,मेरे लिये ख़ुदा रहोगे
दिल नहीं मानता,किसी और के सज़दे में सर क्यूँ रखूँ
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