Thursday 1 February 2024

हाँ…मैं चाय पीता हूँ

 हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..


मैं शराब पियूँगा तो 

तुम बदनाम हो जाओगी

जीतने झूठ बोल लूँ दुनियाँ को 

कारण तुम ही बताई जाओगी


जैसे-तैसे गम पिता हूँ 

हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..


तुम्हें सोचने से जो सर दर्द होता है 

उसकी कोई और दवा हो तो बताओ

सिगरेट पियूँगा तो ज़्यादा खलूँगा तुम्हें

बेहतर है; चाय पीने से मत हटाओ


तुम्हें सोचकर जी लेता हूँ

मैं चाय पीता हूँ…..


गरम चाय का कप जब हाथ लेता हूँ

मानो तुम्हें भी अपने साथ लेता हूँ

आँखें मूँदकर ;पहले नशे सा सूंघकर

होंठों से लगा लेता हूँ


सिप-सिप करके पिता हूँ

हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..


पिता हूँ तो पिता हूँ बस

ख़ाली कप भी ख़ाली कहाँ भाता है 

मैं चाय को हाँ कह देता हूँ…

जब कोई भी पूछने आता है 



कभी-कभार दो कप भी पी लेता हूँ

किसी और के कप में नहीं पीता हूँ

चाय के रंग से मिलते-जुलते 

कई कप सँभाल रखे हैं मैंने

रोज़ बदल कर पिता हूँ

हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..


कप लेकर छत पर आ जाता हूँ

आँखें बंद करता हूँ; सामने तुमको पाता हूँ

सॉफ्ट-सॉफ्ट से धौखे भरे से 

तेरी याद में गीत बजाता हूँ…

साथ में गुन-गुनाता हूँ…


ऊधड़े सपनों को सीता हूँ

हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..

1 comment:

Anonymous said...

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