Thursday, 26 June 2025

तुम्हारी याद आती है,,,,,

 बदलता है जब भी मौसम,तुम्हारी याद आती है 

धूप से शाम होती है ,तुम्हारी याद आती है 


ऐब दो पाल रखे हैं , एक तुम और एक तुम्हारे रंग की चाय 

चाय को समझकर जाम पीता हूँ ,तुम्हारी याद आती है 


जाकर बैठ गए तुम दूर,दिल के भेद कहूँ किस से 

आधी रात सताए याद तो बात करूँ किस से 

छाती रख सिरहाना जब आराम लेता हूँ,तुम्हारी याद आती है 


रात को सोए-सोए ही बिस्तर पे तुम्हें हाथों से ढूँढना 

जागकर नींद से तुमको तुम्हारी खैरियत पूछना 

आदत हो बुरी बेशक मगर दिल को लुभाती है

रात से भौर होती है,तुम्हारी याद आती है


मुकरर दिन से पहले मायके से लौट आओ तो ये मानू 

आते ही करो बंद दरवाजे,गले लग जाओ तो ये मानु 

जितनी मुझको आती है उतनी ही तुम्हें भी याद आती है 

तुम्हारी याद आती है,तुम्हारी याद आती है,,,,,,

Tuesday, 10 June 2025

रिश्ते बने रहे ।।

 

माँ ने सालों तक कपड़े धोए

तह किए,प्रेस किए

रख दिए,पहनने के लिए दिए

कभी जेब नहीं टटोली

धुल न जाए जरूरी कागज़ कोई  

इसलिए जेब मे हाथ भी डाला

कागज़ निकाला

और बिना खोले लौटा दिया

उसी को

जिसकी जेब से निकला था

 

राज बने रहे,रिश्ते बने रहे

माँ बनी रही माँ

जासूस नहीं बनी

 

अक्सर मेरे कमरे का दरवाजा रहा बंद

मैं अकेला कमरे मे रहा नजरबंद

पिता कभी अंदर नहीं आए

जरूरत पड़ी तो मुझे बुलाया

काम बताया,वापस भेज दिया

घर हमेशा उनका रहा

पर कमरा उन्होंने मेरा बनाए रखा

कभी-कभार मेरे बारे मे पूछताछ की

पर कभी खामियाँ जाहीर नहीं की

राज बने रहे,रिश्ते बने रहे

पिता-पिता रहे

जासूस नहीं बने

 

लगभग हम-उमर रहा बड़ा भाई

मेरी ही उम्र से ताज़ा-ताज़ा निकला

मेरे ज्यादातर दोस्त, भाई के भी दोस्त थे

सब जानता था

अच्छे से मुझे पहचानता था

एक घर मे रहते हैं

शायद पढे हो छिप-छिपकर

मैंने उसके और उसने मेरे

प्रेमपत्र

पर बावजूद इसके

बड़ा भाई पिता और

छोटा पुत्र बने रहा

एक दूसरे का

सच जानकर

यही बेहतर मानकर

राज छिपे रहे

राज बने रहे,रिश्ते बने रहे

भाई बना रहा भाई

जासूस नहीं बना

 

बड़ी बहन सोचती है दूर तलक

बैठाकर रखा उसने भी अपनी पलक

छोटे थे तो पहन लेते थे एक दूसरे के कपड़े

पर अब नहीं छूते एक दूसरे की अलमारी भी

हालांकि है दोनों को एक दूसरे की जानकारी भी

पर ;

अनजान रहे ताकि

दोनों का सम्मान रहे

राज बने रहे , रिश्ते बने रहे

बहन बनी रही बहन

जासूस नहीं बनी

 

कुछ कमीनों के झुंड से तो कुछ भी छिपा नहीं

हर कांड मे वो साथ थे,छिपाने को कुछ रहा भी नहीं

शराब-शबाब,नशा-खुदा, लत-बरकत-शौहरत

सब उनके साथ ही पाई

कभी कोई बात नहीं छिपाई

एक फोन पर मिलने चले आने

वाले दोस्तों ने भी

कभी नहीं छुआ,एक दूसरे का फोन

किसी तस्वीर या मेसेज पर नहीं पूछा :ये कौन?

एक दूसरे से दस-बीस रुपये के लिए झगड़ने पर भी

किसी ने किसी की जेब मे हाथ नहीं डाला

पर्स नहीं छुआ

राज़ बने रहे ,रिश्ते बने रहे

दोस्त बने रहे दोस्त

जासूस नहीं बने   

 

'गुरु' रिश्ते मे जरूरी है 

अपनी ही एक जगह 

ताकि बनी रहे गरिमा 

ताकि रिश्ते बने रहे

प्रेम बना रहे 

प्रेमी बने ;जासूस नहीं ।



 'गुरु"

 

 

Sunday, 5 January 2025

दंड-विधान

 दंड-विधान 

मुझे समझना है वह दंड विधान 

जो मेरे गलती करने पर 

बनाता है मुझे पापी 

और 

तुम्हें महान 


एक बंधन मे बंधे हम दोनों 

बराबर थे 

दोनों ही एक धरा पर थे 

फिर एक रोज

हुई मुझसे गलती ;और हमारा रिश्ता 

बन गया तुमपर बोझ ?


चलो मुझसे गलती हुई 

बना गया मैं अपराधी 

पर ;मुझे सजा देने की 

तुम्हें किसने  दी आजादी  ???


अस्वीकार्य है वो दंड विधान 

जो सजाएँ बांटता हो 

लिंग-भेद के अनुसार 

रिश्तों के अनुसार 

कमाई के अनुसार 

जरूरत के अनुसार 


गलती एक 

पर पुरुष और नारी को सजा मे भेद 

रिश्ता वही ;मेरी गलती तो गलती 

तुम करो तो वही सही 

क्या खुद को सही साबित कर पाते ?

क्या इन गलतियों पर सबको वही सजा दे पाते ?

मा-पिता को भी ;भाई  बहन को भी???

अगर उनसे भी यही 

या शायद इस से भी बड़ी गलती हुई होती 

या 

शायद हुई भी होगी..।।।

पर......  तुमने छिपा ली होगी 

और बात जब  मुझपर आई तो 

तुम करने लगे इंसाफ 

भूल गए सबके अपराध 

थोप दी मुझपर सारी सजा 

बन गए मेरे खुदा 


ये कैसा इंसाफ है 

तुम ज्यादा कमाते हो 

तो तुम्हें सब माफ है 

एक को सब सजा दी जाएगी 

दूसरे की जरूरत है तो गलती भूला दी जाएगी ?


समझाओ मुझे वो सामाजिक संविधान 

जिसमे अपराध और गलती 

दोनों ही  एक समान

तुमसे गलती हुई 

तुम माफ हुए 

मुझे गलती हुई तो मानो 

गलती नहीं पाप हुए 

लाओ जरा संज्ञान मे 

पैमाना आँकने का क्या है इस दंड विधान मे 


दवा और नशा 

श्रेया और प्रेया 

आलिंगन और आकर्षण 

चाहत और जरूरत 

अपशब्द किन्तु  अपनापन 

समझाओ दोनों मे अपराध क्या है और गलती क्या ?


ये कैसा विधान है 

जो हर हल पर प्रश्न खडा कर देता है 

केवल सजाओं के लिए गलतियों को  

छोटा और बड़ा कर देता है 


बकरी चोरी छोटी,पैसा चोरी अपराध बड़ा 

क्यूँ  गाली देना गलती छोटी,क्यूँ चरित्र हनन अपराध बड़ा 

क्यूँ तन पर घाव छोटे और मन पर घाव आघात बड़ा  

क्यूँ माफी छोटी, क्यूँ इंसाफ बड़ा

क्यूँ माफी छोटी-------क्यूँ इंसाफ बड़ा  


लंबा रस्ता तय करना है 

इस दंड विधान को एक तरफ रखना होगा 

और महत्व देना होगा 

इंसाफ से बढ़कर माफी को 

बीति जिंदगी भुलकर बाकी को 

प्रेम मे तुम्हें समर्पित हूँ 

ऐसा झूठा दंड विधान मेरा हकदार नहीं 

मतभेद मुझे स्वीकृत है 

मनभेद किंचित भी स्वीकार नहीं …

    

                                                         'गुरु'*


Saturday, 24 August 2024

तेरे घर की छत को देख लिया

 

तेरे घर की छत को देख लिया

महीनों बाद लिखना शुरु किया

 

हम तो चाय छोड़ चुके थे

तुम्हें सोच के फिर बिस्मिल्लाह किया

 

तुमने तो बातें करनी छोड़ ही दी हैं

हमने भी अब आशा करना छोड़ दिया

 

तुमने ऐसी आस तोड़ी  है

"गुरु" छत पर जाना लगभग छोड़ दिया


"गुरु"

 

 

 

 

Saturday, 6 April 2024

चाहते हैं तेरे जैसा होना…!!

 छोड़ गुरु दुनिया के ख़यालात पर हैरान होना 

ये बुरा भी कहते हैं और चाहते हैं तेरे जैसा होना 


सच्ची मोहब्बत बोलकर जान लूटने वाले आशिक़

चाहत सबकी ही वही है; साथ हमबिस्तर होना 


साफ़-साफ़ पूछोगे तो मुकर जाएँगे सबके महबूब 

हवस को मोहब्बत कह दो;शुरू कर दो साथ सोना 


हम साफ़ कहते हैं,चाहत हवस की थी,हवस की है 

“गुरु” के बस में नहीं साल भर बोलना बाबू-शौना

Thursday, 1 February 2024

हाँ…मैं चाय पीता हूँ

 हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..


मैं शराब पियूँगा तो 

तुम बदनाम हो जाओगी

जीतने झूठ बोल लूँ दुनियाँ को 

कारण तुम ही बताई जाओगी


जैसे-तैसे गम पिता हूँ 

हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..


तुम्हें सोचने से जो सर दर्द होता है 

उसकी कोई और दवा हो तो बताओ

सिगरेट पियूँगा तो ज़्यादा खलूँगा तुम्हें

बेहतर है; चाय पीने से मत हटाओ


तुम्हें सोचकर जी लेता हूँ

मैं चाय पीता हूँ…..


गरम चाय का कप जब हाथ लेता हूँ

मानो तुम्हें भी अपने साथ लेता हूँ

आँखें मूँदकर ;पहले नशे सा सूंघकर

होंठों से लगा लेता हूँ


सिप-सिप करके पिता हूँ

हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..


पिता हूँ तो पिता हूँ बस

ख़ाली कप भी ख़ाली कहाँ भाता है 

मैं चाय को हाँ कह देता हूँ…

जब कोई भी पूछने आता है 



कभी-कभार दो कप भी पी लेता हूँ

किसी और के कप में नहीं पीता हूँ

चाय के रंग से मिलते-जुलते 

कई कप सँभाल रखे हैं मैंने

रोज़ बदल कर पिता हूँ

हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..


कप लेकर छत पर आ जाता हूँ

आँखें बंद करता हूँ; सामने तुमको पाता हूँ

सॉफ्ट-सॉफ्ट से धौखे भरे से 

तेरी याद में गीत बजाता हूँ…

साथ में गुन-गुनाता हूँ…


ऊधड़े सपनों को सीता हूँ

हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..

Thursday, 25 January 2024

चाय….

दिल तेज़ाब बन बैठा 

पर पी तेरी याद में चाय 

रात भर नींद ना आई 

डॉक्टर ने वजह बताई चाय


तेरी तस्वीर छिपाने को 

मोबाइल सम्भाल रखा है 

पासवर्ड नाम है तेरा 

वॉलपेपर भाँप भरी चाय


तेरी आँखों में डूबे इस कदर

चश्मे लगे, सर दर्द बताया ना जाए

दिल में बेचैनी,कमी आई सुकून में 

डॉक्टर ने दवा बताई तीन वक्त चाय 


तुम हो सामने और ठंड बहुत हो 

होंठ काँपे कुछ कहा ना जाये 

मनपसंद शख़्स और गर्मा-गर्म चाय 

“गुरु” कम है जीतने भी मिल जाये


“गुरू”