प्रिय
मुझे तुमसे सच्ची मोहब्बत है मगर
तुम्हें मुझसे दिन भर बात करनी होगी
ताकि मैं दिल से किसी और को
भुला सकूँ….व…
तुम्हें बसा सकूँ…
तुम्हें आना होगा मेरी ज़रूरतों में काम
ताकि…कोई और ना आये
वरना मैं मोह जाऊँगी
किसी तीसरे की हो जाऊँगी…
मेरे सारे चेहरे खूबसूरत दिखाने होंगे
तारीफ़ों के झूठे पुल बनाने होंगे
मैं ग़ुस्सा करूँगी,बदसलूकी करूँगी
और तुम्हें नख़रे उठाने होंगे…
मुझसे मोहब्बत करनी होगी
इज़्ज़त करनी होगी
ये जानकर भी
कि मेरे महबूब रहे हैं कई
पर मेरी बात मानो तो सही
अब वाला जो दिल में बसा है
वही है आख़िरी…..
ये सब कर सकते हो
तो मेरे दिल में रह सकते हो…
अपना कह सकते हो….
सुनो मेरी प्रिय सखी
मैंने तुमसे प्यार किया है
चौकीदारी नहीं
यूँ दिल से कितनों को निकालूँगा
अपनी तस्वीर तुम्हारे दिल में
कितनी बार डालूँगा…
अगर सच में मोहब्बत है
तो…….
ये तुमको ही करके दिखाना होगा
दिल में मुझे बसाना होगा…
वरना दुनिया भरी पड़ी है
दिल को भरती रहो
शौंक पूरे करती रहो…
मैं पुराना आशिक़ हूँ….
तुम्हारे सिवा
दिल में भला किसे बनाऊँगा
मन मारकर चला जाऊँगा
आज हूँ….साथ तो हूँ….
कल नज़र नहीं आऊँगा….
लेकिन….अपने साथ ले जाऊँगा
तुम्हें मुझे चाहने का अधिकार
वो इंतज़ार
जो छत पर मैंने तुम्हारे लिए
कई साल किया है
वो एक जन्म
जो तुम्हारे साथ जिया है
वो नज़र जो तुम्हें देखकर
ठहर जाता करती है
वो मीठी आवाज़
जो तुम्हारे साथ
दिन-रात बात किया करती है
वो हक़
जिस से तुम कभी भी
मुझे फ़ोन कर सकती हो
ग़ुस्सा कर सकती हो…
लड सकती हो….
झगड़ सकती हो….
बिना पलक झपकायें
मेरी आँखों में झांकने का
हक़…..मुझसे मुझे माँगने का
अब मैं सही रास्ता नहीं दिखाऊँगा
बातें नहीं समझाऊँगा
ज़रूरत हो या आपातकाल
मैं काम नहीं आऊँगा
मुँह मोड़ लूँगा
सारे बंधन तोड़ लूँगा
मेरा प्रेम अमर रखूँगा
तुम्हें अधर में छोड़ दूँगा
रहा फ़ैसला तुमपर
रहो,रचो,बसो
किसी के दिल में
किसी के घर में
किसी के बिस्तर पर
और समझाना दुनिया को
कि तुमने कुछ नहीं किया
अगर कोई माने….तो ……
अगर आओ मेरे पास
मेरी बनकर पूरी आना
अधूरी
मुझे स्वीकार नहीं …..
मुझे तुमसे मोह और मोहब्बत
दोनों बेपनाह
है
मगर
इस मोहब्बत में तुम्हारी
शर्तें स्वीकार नहीं….
“गुरु” का प्यार…..प्यार है
कोई बातों का बाज़ार नहीं
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