तेरे घर की छत को देख लिया
महीनों बाद लिखना शुरु किया
हम तो चाय छोड़ चुके थे
तुम्हें सोच के फिर बिस्मिल्लाह किया
तुमने तो बातें करनी छोड़
ही दी हैं
हमने भी अब आशा करना छोड़ दिया
तुमने ऐसी आस तोड़ी है
"गुरु" छत पर जाना लगभग छोड़ दिया
"गुरु"
तेरे घर की छत को देख लिया
महीनों बाद लिखना शुरु किया
हम तो चाय छोड़ चुके थे
तुम्हें सोच के फिर बिस्मिल्लाह किया
तुमने तो बातें करनी छोड़
ही दी हैं
हमने भी अब आशा करना छोड़ दिया
तुमने ऐसी आस तोड़ी है
"गुरु" छत पर जाना लगभग छोड़ दिया
"गुरु"
छोड़ गुरु दुनिया के ख़यालात पर हैरान होना
ये बुरा भी कहते हैं और चाहते हैं तेरे जैसा होना
सच्ची मोहब्बत बोलकर जान लूटने वाले आशिक़
चाहत सबकी ही वही है; साथ हमबिस्तर होना
साफ़-साफ़ पूछोगे तो मुकर जाएँगे सबके महबूब
हवस को मोहब्बत कह दो;शुरू कर दो साथ सोना
हम साफ़ कहते हैं,चाहत हवस की थी,हवस की है
“गुरु” के बस में नहीं साल भर बोलना बाबू-शौना
हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..
मैं शराब पियूँगा तो
तुम बदनाम हो जाओगी
जीतने झूठ बोल लूँ दुनियाँ को
कारण तुम ही बताई जाओगी
जैसे-तैसे गम पिता हूँ
हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..
तुम्हें सोचने से जो सर दर्द होता है
उसकी कोई और दवा हो तो बताओ
सिगरेट पियूँगा तो ज़्यादा खलूँगा तुम्हें
बेहतर है; चाय पीने से मत हटाओ
तुम्हें सोचकर जी लेता हूँ
मैं चाय पीता हूँ…..
गरम चाय का कप जब हाथ लेता हूँ
मानो तुम्हें भी अपने साथ लेता हूँ
आँखें मूँदकर ;पहले नशे सा सूंघकर
होंठों से लगा लेता हूँ
सिप-सिप करके पिता हूँ
हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..
पिता हूँ तो पिता हूँ बस
ख़ाली कप भी ख़ाली कहाँ भाता है
मैं चाय को हाँ कह देता हूँ…
जब कोई भी पूछने आता है
कभी-कभार दो कप भी पी लेता हूँ
किसी और के कप में नहीं पीता हूँ
चाय के रंग से मिलते-जुलते
कई कप सँभाल रखे हैं मैंने
रोज़ बदल कर पिता हूँ
हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..
कप लेकर छत पर आ जाता हूँ
आँखें बंद करता हूँ; सामने तुमको पाता हूँ
सॉफ्ट-सॉफ्ट से धौखे भरे से
तेरी याद में गीत बजाता हूँ…
साथ में गुन-गुनाता हूँ…
ऊधड़े सपनों को सीता हूँ
हाँ…मैं चाय पीता हूँ…..
दिल तेज़ाब बन बैठा
पर पी तेरी याद में चाय
रात भर नींद ना आई
डॉक्टर ने वजह बताई चाय
तेरी तस्वीर छिपाने को
मोबाइल सम्भाल रखा है
पासवर्ड नाम है तेरा
वॉलपेपर भाँप भरी चाय
तेरी आँखों में डूबे इस कदर
चश्मे लगे, सर दर्द बताया ना जाए
दिल में बेचैनी,कमी आई सुकून में
डॉक्टर ने दवा बताई तीन वक्त चाय
तुम हो सामने और ठंड बहुत हो
होंठ काँपे कुछ कहा ना जाये
मनपसंद शख़्स और गर्मा-गर्म चाय
“गुरु” कम है जीतने भी मिल जाये
“गुरू”