Friday 15 March 2024

गुनाह जैसा हो…लानत मिले उसी तरह से

 बुरे थे…बुरे हैं…मगर किस वजह से 

गुनाह जैसा हो…लानत मिले उसी तरह से 


क्या किसी मुसीबत में साथ खड़ा नहीं हूँ

जैसा भी हूँ, यक़ीं मानो..बाप बुरा नहीं हूँ…

क़त्ल की सज़ा ना दो,फ़ख़्त चोरी की वजह से 

गुनाह जैसा हो…लानत मिले उसी तरह से 


लाचार माता-पिता को मैंने तुमसे ज़्यादा सम्भाला है 

उन्होंने अपने घर और दिल से क्यों निकाला है 

लाख झगड़े हो मगर हालत बिगड़ने नहीं दिये घरेलू कलह से 

गुनाह जैसा हो…लानत मिले उसी तरह से 


मौक़ा जब-जब हाथ लगा,तुम तो अपना रौब दिखा बैठे 

सात जन्म की बात हुई थी,एक गलती में हाथ छुड़ा बैठे 

तुम्हारे बुरे समय में साथ मैं,तुम छोड़ भागे मेरे बुरे समय में 


गुनाह जैसा हो…लानत मिले उसी तरह से 


तुमने एक को, मैंने घर और व्यापार दोनों को सम्भाला है 

कभी कंगाली तो कई बुराइयों से तुम्हें निकाला है 

“गुरु” सोच के चुप रहा,क्या मिलेगा इस ज़िरह से 


गुनाह जैसा हो…लानत मिले उसी तरह से 




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