Wednesday, 20 December 2023

तेरी दी निशानी,मुसीबत तुमसे भी बड़ी

 तेरी दी निशानी,मुसीबत तुमसे भी बड़ी 

हाथों से निकाली, तो गले में आ पड़ी 


मुझे अब तक याद है गहरी सी आँखें तेरी 

छोटे-छोटे होंठ,आँखों की भौंहें चढ़ी-चढ़ी


“गुरु” हुए दूर तो जीते जी मर जाऊँगी

सालों पहले किया करती थी बातें बड़ी-बड़ी


तेरी यादों को साथ में बांध रखा है ना चाहकर भी

चाँदी की अंगूठी दी थी तुमने,मैंने बना ली हथकड़ी


तेरे ज़हन में फिर भी फीकी पड़ गई मेरी यादें

सोने सी चमकती निशानी तेरी अब भी मेरे गले में लटकी पड़ी

Friday, 17 November 2023

अपनी छत पे आया करो…

  देखने मुझे,अपनी छत पे आया करो

ढूँढो मुझे,मेरा नाम चिल्लाया करो


तुम ऐसा करो,मुझे बदनाम कर दो 

बहुत कह लिया,अब करके दिखाया करो


जेब,फ़ोन,दिल,दिमाग़ सब टटोल ली

शक न मिटे तो जासूसी भी करवाया करो


मेरी माशूक़ बनकर मरना,तेरी क़िस्मत में कहाँ

तुम तो बस मुझे आज़माया करो


आज तक “गुरु” ने कहीं तेरा नाम लिया है भला?

तुम निस्संकोच मुझपे आगे भी दाग लगाया करो

Thursday, 14 September 2023

अय्याश बनाने वाले तुम…

 तेरी क़िस्मत में पक्के थे हम

हमे काश बनाने वाले तुम

तेरे भोले-भाले आशिक़ थे हम

आशिक़ से अय्याश बनाने वाले तुम 


सामने बैठकर आज तलक भी 

हमे समझ कहाँ कोई पाया था 

शतरंज के वज़ीर-बादशाह हम थे 

हमे गड्डी वाले ताश बनाने वाले तुम

तेरे भोले-भाले आशिक़ थे हम

आशिक़ से अय्याश बनाने वाले तुम 


बरसाती अंबर के अंदर तारे गिनना बंद करो

अब मेरी महबूबाओं की गिनती गिनना बंद करो 

ख़ुद चाहो जो मर्ज़ी कहदो तुम मुझसे 

मन ही मन के अंदर मुझको सुनना बंद करो

चाँद सा बनकर पल-पल तुमसे बतियाता था 

आवारा आकाश बनाने वाले तुम 

तेरे भोले-भाले आशिक़ थे हम

आशिक़ से अय्याश बनाने वाले तुम 


तड़प-तड़प कर जी लेंगे

होगा इस से ज्यादा क्या 

मन में लेकर मैल मिलो तुम

इस मिलन का फ़ायदा क्या

“गुरु”जीता जागता सपना था 

मुझे लाश बनाने वाले तुम,….

तेरे भोले-भाले आशिक़ थे हम

आशिक़ से अय्याश बनाने वाले तुम

Thursday, 10 August 2023

हर ग़ज़ल तेरी याद है….

ग़ज़ल में छिपी एक बात है 
हर ग़ज़ल तेरी याद है 

आँसू से भरे मेरे महखाने
तुझसे ही आबाद है 

दूर होकर रोना कैसा 
अब तो तूँ आज़ाद है 

सबसे अज़ीज़ हसरत मेरी 
गिनती में वो भी तेरे बाद है 

हर एक ग़ज़ल में दर्द लिखा है 
लफ़्ज़ तेरे,मेरा हाथ है 

उस से होगा रिश्ता तेरा 
“गुरु” से तो जज़्बात है…

Friday, 4 August 2023

ये मेरे किस काम की….

श्लोक,बाईबल,ग्रंथ, किताबें क़ुरान की

इनमें तुम नहीं तो ये मेरे किस काम की


ये गाँजा,अफ़ीम,पोस्त,ये भाँग-ए-शराब

मुझे बहुत है ज़ाम-ए-चुस्की तेरे नाम की 


चंदा,सितारे,दौलत , मुबारक तुम्हें 

तूँ-मैं और एक चाय,इतनी सी कीमत मेरी शाम की 


तेरी झूठी मोहब्बत तुमको मुबारक पुराने महबूब मेरे 

“गुरु“को नहीं चाहिए मोहब्बत हराम की….

Thursday, 20 July 2023

देखा आधे चाँद को

दामन ढकते देखा हमने रात भर आसमान को 
आपके आगे शर्माते देखा आधे चाँद को 

टूटते तारों को देख सब दीदार आपका माँगते 
रोज़ छज्जे पर आकर बख्शा करो तारों की जान को 

रोज़ गर मुनासिब ना हो तो बेशक कभी-कभी
देखकर या सोचकर तुम्हें,दिल को मिलता थोड़ा इत्मीनान तो 

तुमने बस एक नज़र घूरा जो उसको घड़ी दो घड़ी
“गुरु” ने देखा है झुक कर टूटते फूलों के ग़ुमान को

Tuesday, 18 July 2023

आँखों में ज़हर है…

अलबेला मौसम,अनजाना शहर है
कप में चाय,आँखों में ज़हर है 

बिखरे बाल,खुले बटन,चढ़ी बाजूएँ
सफ़ेद शर्ट पर तेरी घड़ी क़हर है

धीमी बरसात,हल्के बादल,ठंडी हवा 
मीठी चाय में तेरी याद कड़वा ज़हर है

यूँ छत पर तेरा बिना बोले आ जाना “गुरु”
मानो गर्म रेत पर ठंडी सागर की लहर है

Friday, 14 July 2023

आपकी आँखों के अंदर देखें हैं…aapki aankhon ke andar dekhe hain…

 दरिया संग मिलते समुंदर देखे हैं

आपकी आँखों के अंदर देखे है 


हल्के गुलाब की रंगत से बना चेहरा आपका 

केसर के टुकड़े घुलते,दूध के अंदर देखे हैं


सारा दिन अच्छा गया,जब एक नज़र देखा आपको 

मानो मिश्री के टुकड़े खाकर दही के अंदर देखे हैं 


हाए तौबा आवाज़ आपकी,अंतर्मन तक मार करे 

होंठों से निकले तीर चुभते दिल के अंदर देखे हैं


चेहरे पर नागिन सी लटकी,हल्के काले बालों की लट्ट तौबा

चाँद तारों से भरे अंधेरे,मिलते सूरज के अंदर देखे हैं 


दरिया संग मिलते समुंदर देखे हैं

आपकी आँखों के अंदर देखे है

Sunday, 11 June 2023

जा रहा हूँ मैं तेरा शहर छोड़कर …ja raha hu main tera sheher chhodkar

 तेरी ज़हर सी ज़िंदगी में शहद घोलकर

जा रहा हूँ मैं तेरा शहर छोड़कर 


शहद बनके आया था,शहद बनके रहा 

ख़ुशी है मैं जब तक रहा,तेरा बनके रहा 

उलझी ज़िंदगी की गाँठे खोलकर 

जा रहा हूँ मैं तेरा शहर छोड़कर 


मैंने तुझसे  किए मेरे सारे वायदे निभाये हैं 

मेरे भोले-भाले सच ने तेरे संगीन झूठ छिपाए हैं 

ज़हर पिया है अपने अधर खोलकर 

जा रहा हूँ मैं तेरा शहर छोड़कर 



मैं ग़लत रास्तों से तुमको बचाने आया था 

सालों बाद भी मोहब्बत का फ़र्ज़ निभाने आया था 

तेरी दिल्लगी के आगे हाथ जोड़कर 

जा रहा हूँ मैं तेरा शहर छोड़कर 



असला साथ नहीं रखता,,,asla sath nahi rakhta

 जीतकर कमाई है ,झूठी साख नहीं रखता

उस हसीना पर भरोसा ,मैं खाख नहीं रखता

आँखों में आई यादें दिल में उतार लेता मगर 

बारूद से भरकर मैं असला,साथ नहीं रखता


चाहत उसकी जब तक साथ थी; तो थी 

अब उसकी चाहत साथ नहीं रखता 

उसकी याद से इतनी दूरियाँ है मेरी 

उसकी छुई हुई चीजों पर भी ; मैं हाथ नहीं रखता 


उसके दिल में होने का,मैं अहसास नहीं रखता 

उसका होना या ना होना,मायने कुछ ख़ास नहीं रखता 

दिल में कुछ,होठों में कुछ रखते हो  “गुरु”

बेवफ़ा लोगों के आगे ,मैं अपनी बात नही रखता


तुम बिन नींद ही ना आये,ऐसी रात नहीं रखता 

मेरी कद्र ना हो तो मैं  ज़ज़्बात नहीं रखता 

तेरे जाने के ग़म से टूट सा जाये

“गुरु” ऐसे भी हालात नहीं रखता

Wednesday, 31 May 2023

इस शहर में घर क्यों रखूँ,,,,is shehar me ghar kyun rakhun

 ब्याह करके जब तुम ही चली गई

अब मैं इस शहर में घर क्युँ रखूँ


तेरे दिल में मेरी याद,मेरे बाद भी नहीं

मैं मेरे बच्चों के नाम,तेरे नाम पर क्युँ रखूँ


तुमने सजा ली है अलमारी में इत्र की शीशियाँ

मैं अपनी अलमारी में ज़हर क्युँ रखूँ


दूसरों के आग़ोश में गर्माहट लेने लगी हो

तेरे लिये मेरे हाथों में दोपहर क्युँ रखूँ


तुम किसी के लिए कुछ भी रहो,मेरे लिये ख़ुदा रहोगे

दिल नहीं मानता,किसी और के सज़दे में सर क्यूँ रखूँ

पहला प्यार,,,,pehla pyar

 पहला प्रेम तुमसे किया,वही बन गया मोह प्रिय

कैसे नयनन से दूर करूँ,तुम्हीं कुछ कहो प्रिय


वियोग दुख मुझको ही क्यूँ,स्वीकृति तो दोनों की थी

मैं ही तन्हा क्यूँ झेलूँ,तुम भी तौला-मासा सहो प्रिय


संभावित तुम न भाग्य लिखी,जितनी मिली प्रयाप्त सखी

आजीवन मैं तेरे हृदय बसूँ,मुझमें बसकर तुम रहो प्रिय


कभी पूरी न मन की चाह हुई,भला कब कान्हा की राधा हुई

उतना प्रेम तो संभव ना है,उस से कम भी ना हो प्रिय


मेरे नाम में नाम तुम्हारा,मुझे ख़ुद से ज़्यादा तुमसे स्नेह प्रिय

देह अर्पण किसी को रखो,हृदय समर्पित”गुरु” को रखो प्रिय

प्रेम मे शर्त,,,,,prem me shart

 प्रिय


मुझे तुमसे सच्ची मोहब्बत है मगर 

तुम्हें मुझसे दिन भर बात करनी होगी 

ताकि मैं दिल से किसी और को 

भुला सकूँ….व…

तुम्हें बसा सकूँ…


तुम्हें आना होगा मेरी ज़रूरतों में काम

ताकि…कोई और ना आये 

वरना मैं मोह जाऊँगी 

किसी तीसरे की हो जाऊँगी…


मेरे सारे चेहरे खूबसूरत दिखाने होंगे

तारीफ़ों के झूठे पुल बनाने होंगे

मैं ग़ुस्सा करूँगी,बदसलूकी करूँगी

और तुम्हें नख़रे उठाने होंगे…


मुझसे मोहब्बत करनी होगी

इज़्ज़त करनी होगी

ये जानकर भी 

कि मेरे महबूब रहे हैं कई

पर मेरी बात मानो तो सही

अब वाला जो दिल में बसा है 

वही है आख़िरी…..


ये सब कर सकते हो 

तो मेरे दिल में रह सकते हो…

अपना कह सकते हो….


सुनो मेरी प्रिय सखी


मैंने तुमसे प्यार किया है

चौकीदारी नहीं

यूँ दिल से कितनों को निकालूँगा

अपनी तस्वीर तुम्हारे दिल में 

कितनी बार डालूँगा…


अगर सच में मोहब्बत है 

तो…….

ये तुमको ही करके दिखाना होगा

दिल में मुझे बसाना होगा…

वरना दुनिया भरी पड़ी है

दिल को भरती रहो

शौंक पूरे करती रहो…


मैं पुराना आशिक़ हूँ….

तुम्हारे सिवा

दिल में भला किसे बनाऊँगा

मन मारकर चला जाऊँगा

आज हूँ….साथ तो हूँ….

कल नज़र नहीं आऊँगा….


लेकिन….अपने साथ ले जाऊँगा

तुम्हें मुझे चाहने का अधिकार

वो इंतज़ार

जो छत पर मैंने तुम्हारे लिए 

कई साल किया है 

वो एक जन्म

जो तुम्हारे साथ जिया है


वो नज़र जो तुम्हें देखकर 

ठहर जाता करती है

वो मीठी आवाज़ 

जो तुम्हारे साथ 

दिन-रात बात किया करती है 


वो हक़

जिस से तुम कभी भी

मुझे फ़ोन कर सकती हो 

ग़ुस्सा कर सकती हो…

लड सकती हो….

झगड़ सकती हो….


बिना पलक झपकायें

मेरी आँखों में झांकने का 

हक़…..मुझसे मुझे माँगने का


अब मैं सही रास्ता नहीं दिखाऊँगा 

बातें नहीं समझाऊँगा

ज़रूरत हो या आपातकाल

मैं काम नहीं आऊँगा


मुँह मोड़ लूँगा

सारे बंधन तोड़ लूँगा

मेरा प्रेम अमर रखूँगा

तुम्हें अधर में छोड़ दूँगा


रहा फ़ैसला तुमपर

रहो,रचो,बसो

किसी के दिल में 

किसी के घर में 

किसी के बिस्तर पर 


और समझाना दुनिया को 

कि तुमने कुछ नहीं किया 

अगर कोई माने….तो ……


अगर आओ मेरे पास 

मेरी बनकर पूरी आना 

अधूरी 

मुझे स्वीकार नहीं …..

मुझे तुमसे मोह और मोहब्बत 

दोनों बेपनाह

है 

मगर 

इस मोहब्बत में तुम्हारी

शर्तें स्वीकार नहीं….

“गुरु” का प्यार…..प्यार है

कोई बातों का बाज़ार नहीं

इतवार है,,,उसका फ़ोन नहीं आया,,,, Itwar hai,uska fon nahi aaya

 ना नींद हुई पूरी मेरी, ना पेट भर खाया

इतवार है ,,,,उसका फ़ोन नही आया 


कुछ ज़रूरी काम आया होगा 

या देर से जग पाई होगी

नहीं तो कोई रिश्तेदार आ गया होगा 

या तबियत बिगड़ आई  होगी 

ना आँख मेरी चमकी,ना चेहरा खिलखिलाया 

इतवार है ,,,,उसका फ़ोन नही आया


शायद कहीं बाहर गई होगी

परिवार के साथ रही होगी 

इसी के रहते फ़ोन नहीं कर पाई होगी 

मुमकिन नहीं कि उसे याद ना आई होगी 

ना फ़ोन बजा मेरा,ना दरवाज़ा खटखटाया

इतवार है ,,,,उसका फ़ोन नही आया 


शायद काम में खो गई होगी

थककर सो गई होगी 

लेकर करवट जब उसने बाहें जोड़ी हैं 

नींद आ गई इसमें उसकी गलती थोड़ी है 

चाह तो रही होगी,बस टाइम नहीं लग पाया 

इतवार है,,,उसका फ़ोन नही आया 


हो सकता है फ़ोन ख़राब हो गया हो 

या सुबह से घर बिजली ना आई हो 

शायद नेटवर्क की दिक़्क़त होगी 

या फ़ोन चार्ज ना कर पाई हो 


शायद आज उसका फ़ोन चार्ज नहीं हो पाया 

पहला इतवार है जब उसका फ़ोन नही आया 


“गुरु” ख़ुद को ये दिलासे कब तक देते रहोगे 

ख़ुद ही ख़ुद को कब तक ऐसे समझाते रहोगे 

आदत के ये बहाने सोमवार तक चलेंगे 

उम्मीद है कि कल उनकी आवाज़ हम सुनेंगे


मेरे पगले दिल को मै ख़ुद ना समझा पाया 

पहला इतवार है जब उसका फ़ोन नही आया

आँखों में छिपाकर तलवार रखता हूँ,,,,ankho me chhipa kar talwar rakhta hu

 अपने लफ़्ज़ों पर पूरा करार रखता हूँ

आँखों में छिपाकर तलवार रखता हूँ


मुझसे मिलने से पहले अपनी समझ निखार लेना

मैं किसी के सामने बात ,बस एक बार रखता हूँ


ज़िंदगी में लड़ने का थोड़ा तो मज़ा आये “गुरु”

दोस्त तो दोस्त मैं दुश्मन भी समझदार रखता हूँ


इस एक नज़र ने कई हसीनाओं के कलेजे लुटे हैं

होंठ नशीले ,निगाहें  तेज़धार रखता हूँ

Saturday, 27 May 2023

भूला नहीं हूँ,,,,

भूला नहीं हूँ

भूला नहीं हूँ 

जल्द आऊँगा

मैं भी….मेरा फ़ोन भी….


हालत थोड़े जकड़े हुए हैं

कसके पकड़े हुए हैं,,,,

याद दोनों को आती है 

मेरा और तुम्हारा 

दिल दोनों के धड़के हुए हैं,,,


बताऊँगा तो समझ जाओगी

मुझे भी,,,,,और 

मेरा दृष्टिकोण भी,,,,,,

जल्द आएगा

“गुरु”भी,,,,

और फ़ोन भी,,,,


बाहर हूँ,,,

शायद इसलिए कि कुछ 

अच्छा हो सके

मिल सकें,,,

एक-दूसरे में खो सकें,,,

एक होकर;

लिपटकर सो सकें

उम्मीद है तुम समझ गई होगी

मेरे शब्द भी,,,

मेरा मौन भी,,,,

जल्द आएगा

“गुरु” भी,,,

“गुरु”का फ़ोन भी,,,

Monday, 3 April 2023

चाय….chay…a poem by guru

तेरी याद में पीऊँगा चाय

जब तक तेरी याद ना जाए


डरने कि क्या बात है आदत 

रात जाये फिर से दिन आए


वो साल बाद भी अपना है जब

फिर खोने पर रोना काहे


चाय पी-पी फुकूँगा मैं छाती 

दुःख जितना हो बँटाया जाए


वही करना जो सही लगे तुम्हें

“गुरु”की इच्छा घर बच जाए


तेरी याद में पीऊँगा चाय

जब तक तेरी याद ना जाए


तुम ख़ास…हो…तो….हो ….

तुम ख़ास…हो…तो….हो

हम साथ…हो न हो
तुम पास…हो न हो…
ज़िंदगी कितनी ही कड़वी हो…मगर..
तुम मिठास …हो …तो…हो…

तुम ख़ास…हो…तो….हो

गले लगा कोई और हो
भले ही दिल में चोर हो…
पर उसके जिस्म में भी मुझे 
तेरा अहसास ….हो…तो…हो…

तुम ख़ास…हो…तो….हो


देह दूँ किसी को भी…
स्नेह दूँ…किसी को भी …
आदतों में तुम अव्वल
हवस की प्यास..तुम..हो..तो…हो

तुम ख़ास…हो…तो….हो

माह..साल..जब भी मिलो..
लिपट..लिपट के यूँ कहो…
“गुरु” चलो…अंदर चलें
फिर मुलाक़ात…हो..न..हो

तुम ख़ास…हो…तो….हो

Tuesday, 21 March 2023

थक गए….thak gaye….a poem by Guroo

 मनाया भी…जताया भी…अब तो रो-रो के थक गए

तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए


तुम्हारी नादानियाँ तुमसे अधिक हमने भुगती हैं

आवारगी,बेशर्मी,बेवफ़ा मेरी आँखों को चुभती है

तुम्हारी हँसी नहीं रुकती,हम रो-रो के थक गए

तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए


अंधा समझती हो सही,मगर पागल तो ना समझो

मोहब्बत ना समझो ना सही,हमे आदत तो समझो

ख़ुद को ढूँढने निकले थे,तुमको खो-खो के थक गए

तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए


समझता हूँ ,मेरे स्वालों पर खामोशी तुम्हारे पास रहती है 

तुम्हें लगता है”गुरु” के मिज़ाज में सदा मिठास रहती है 

अंधेरे में रहें कितना , तुम्हारी ख़ातिर सो-सो के थक गए

तुम्हारे थे…तुम्हारे हैं…तुम्हारे हो-हो के थक गए


Sunday, 5 March 2023

हंस…hans


 ग़ुरूर तौबा कि तुमपर बगुले लाख मरते हैं

मगर ये समझो वो बगुले कइयों पर आँख रखते हैं

भले “गुरु “तुम्हारी आँख को कई साल खलता था

मगर एक हंस था जो बस…और बस 

तुम्हीं पर मरता था……


मोहब्बत.......MOHABBAT

 



 चेहरे पर मुस्कान ,दिल में बेक़रारी हो रही है

शायद पुरानी मोहब्बत नई नफ़रत पर भारी हो रही है 


“गुरु”

Thursday, 19 January 2023

सच में मुझसे प्यार करोगी…

 जब सच में मुझसे प्यार करोगी 

छत पर मेरा इंतज़ार करोगी…


मैं आऊँ या ना आऊँ मिलने

छत पर पागल सी फिरोगी 


मेरी “ना”चाहे लाख बार हो

तुम “हाँ”हर बार करोगी


मुझमें ही तुम्हें चाँद दिखेगा

कमी सारी दरकिनार करोगी


हर जगह नज़र मैं ही मैं आऊँगा 

रातों को मेरे लिये बेक़रार रहोगी


बाज़ार में नये आशिक़ रोज़ मिलेंगे

आँखें बंद कर रास्ता पार करोगी


साल दो साल चाहे जितना मन बहलालो

ज़रूरत में “गुरु” को याद करोगी






Monday, 9 January 2023

Mujhe fir se chaho mat…. मुझे फिर से चाहो मत Apoorn by guroo


 उलझी-उलझी सी ज़िंदगी,और उलझाओ मत

झूठे मन से मोह लगाके,मुझे फिर से चाहो मत


नेह लगाके प्रियतम तुमसे,झूठी “हाँ” को “हाँ”माना

बनके गुलाबी डोर सखी,पतंग सा उड़ाओ मत

झूठे मन से मोह लगाके,मुझे फिर से चाहो मत


तन बाँटा कइयों में,मन तक में आज कोई और सखी

“अब भी मेरी हो” बोल-बोलकर,मुझे चिढ़ाओ मत 

झूठे मन से मोह लगाके,मुझे फिर से चाहो मत


तन सबका,मन उसका, धन-धन “गुरु” से कहना क्या

मुश्किल से तो दूर किया है,फिर से दिल में समाओ मत

झूठे मन से मोह लगाके,मुझे फिर से चाहो मत


गुरु